ये दिल्लीवाली…
ये दिल्लीवाली कामकाजी लड़कियाँ हैं,
जो मर्दों की दुनिया का डटकर सामना करती हैं
कभी साथ पाकर तो कभी अकेले।
ये उन लड़कियों-युवतियों की दुनिया है जो अपने हिस्से का काम भी करती हैं, और साथ ही पुरुषों की माने जानेवाली काम भी।
ये अब टैक्सी चलाती दिखती हैं,
पुरुषों के बाल काटते भी मिल जाती हैं,
पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में तेल भरती भी नज़र आती हैं,
रिक्शा चलाती हैं,
सिक्योरिटी गार्ड के रूप में खड़़ी हैं,
एक्स्ट्रा का काम भी करती हैं,
बिजनेस भी करती हैं,
कॉल सेंटर में डेटा इंट्री का काम करती हैं,
साथ ही पूरा टेली ऑपरेटिंग सिस्टम सँभालती हैं,
दुकानों पर सेल्स गर्ल की भूमिका में हैं।
यानी वो सारे काम जो कल तक पुरुषों के नाम सुरक्षित थे।
शहर कहती लड़कियाँ…
ये कहानियाँ दिल्ली की किशोरियों की आवाजें हैं, जो बहुमंजिला इमारतों से घिरे शहरी मजदूरों के रिहाइशी इलाकों में जीते हुए एक नई ज़ुबान और अपनी अभिव्यक्ति के नए रास्ते तलाश रही हैं।
ये दिल्लीवालियाँ
वाल मैगज़ीन
हमारे कलेक्टिव की गतिविधियों को बाहर लाने में वाल मैगज़ीन की अहम भूमिका है. कभी रुकते-ठहरते तो कभी तेज़ी के साथ ज़ोश-ख़रोश में इसके प्रकाशन पर हम काम करते रहे हैं. इस प्रक्रिया में कई बार हमें इसके रूप-रंग में बदलाव भी करना पड़ता रहा है. इसमें मेहनत लगती है लेकिन इस से हमारे समय और सोच की कई परतें भी उभरकर सामने आती हैं। कई बार ऐसा लगता है कि जो पहली बार लिखा गया उसे ज्यों-का-त्यों छाप दिया जाए. लेकिन हमें तो उस कारीगर की तरह होना है जो मेज़ का ढाँचा तैयार होने के बाद उसे बार-बार घिसकर चमकाता है, फिर उस पर वार्निश की कई परतें चढ़ाता है.
इस वाल मैगज़ीन में सिर्फ़ क़िस्से ही नहीं होते, जीवन के अनुभव और संस्मरण भी होते हैं, जिससे एक ही विषय पर कई लोगों की सोच एक जगह पढ़ने को मिल जाती है. लड़कियों की दुनिया पर सोचते हुए नई बातें उभर कर आती हैं, और एक सुखद वातावरण बनता है, और भी कई तरह के भाव उमड़ते रहते हैं...ये वाल मैगज़ीन मुहल्ले के बीचोबीच घूम रही, जगह बना रही सोच और उसके परिणाम को सामने लाने के लिए तैयार की जाती है …

