पतंग का मौसम 

 अपने घरों के कामों को जल्दी निबटा कर, अधिकतर घरों की महिलाएँ अपने ख़ाली वक्त़ में राखी का माल बनाती हैं। 
आज पंद्रह अगस्त है तो वे सब भी जल्दी-जल्दी अपने घरों के कामों को निपटाने में लगी हुईं हैं। ताकि कुछ देर छत पर बैठकर ही सही थोड़ा-सा मनोरंजन का लुत्फ़ तो उठा लें।
मूँगफली वाली गली में घुसते ही एक पतली गली से गुज़रने के बाद सामने वाले घर में एक नीले रंग का जंपर पहने सुनहरी बालों वाली गोरी-सी एक लड़की सुनहरी जुड़ा बनाए रहती है। क़रीब अठारह साल की होगी वह। उसका नाम सोनी है ।
आज सोनी का चेहरा लाल सुर्ख हो रहा था। वो सारे काम ऐसे कर रही थी जैसे कोई रेल छूटने वाली हो। घर में फूल झाड़ू से वह अपने आँगन की तेज़ी से सफ़ाई कर रही थी। आते-जाते बच्चे पतंग हाथ में थामे उसको उड़ाने का इशारा कर इधर-उधर भाग रहे थे। सोनी की नज़र बार-बार घड़ी की ओर चली जाती। अभी ग्यारह बजकर तीस मिनट हो रहे थे। गली के अंदर छतों से आती टीन बजने की 'टन टन की आवाज़' और 'आई पो छे' की आवाज़ सुन वो जल्दी से पोछा लगाने लग जाती है।
आज तो मानो आसमान पतंगों से भरा हो। ऐसा लग रहा था जैसे आसमान में पतंग की सेल लगी हुई हो। छतों पर पतंग कट-कट कर गिरे जा रहे थे। आज पक्षी भी ऊँचे आसमान में नहीं, नीचे ही उड़ कर अपने-अपने घरौंदे में लौट रहे थे। सभी घरों की छतों पर अधिकतर लड़के ही पतंग उड़ा रहे थे। जो औरतें, लड़कियाँ छत पर थीं, वो या तो चीयर-अप कर रही थी या फिर चरखी पकड़े हुए खड़ी थीं। कोई डांस कर रहा था तो कोई माइक को हाथों में लिए 'आई पो छे' और 'जय हिंद' के नारे लगा रहे थे। देशभक्ति गीतों की आवाज़ एक नई उमंग और उल्लास पैदा कर रही थीं। कोई माइक के पास जाकर गुनगुनाता।
ये सब देख साहिबा थोड़ी-सी सहमी हुई थी। 
आसपास के लड़के बार-बार उन्हीं की छत की तरफ़ देखते। वहीं पड़ोसन मुँह फेर कर कहतीं, ‘अरे इन लड़कियों के जाननेवाले होंगे, तभी तो ये खड़ी हैं। अब देखो लड़के-लवारे आज के दिन छतों पर डले (पड़े) रहते हैं। इन्हें कुछ कह दिया तो सर फुटाई हो जाएगी!’ इतना सुन मुस्कान बोली, 'अरे चाची नेक टाइम मिला है। शांति से पतंग तो उड़ाने दो।'
उन्होंने पतंग उड़ाना जारी रखा तभी साहिबा बोली, 'चलो बाजी।' जैसे ही तीनों पतंग समेत नीचे उतरने को हुई तो देखा किसी ने जीना ही हटा रखा है। ये देख तीनों के मुँह उतर गए। फिर उन्होंने आवाज़ लगाई भी तो कोई नहीं आया। ये सब देख तीनों आपस में खूब हँसी। फिर मुस्कान बोली ‘बाजी टाइम कैसे चल रहा है।’
साहिबा मन ही मन अल्लाह से दुआ कर रही थी कि डाँट न पड़े। क्योंकि अब दिन छुपने का समय हो गया था। 
मुस्कान ने भाभी को कॉल लगाया। वे बोली 15 मिनट में आएँगी। फिर सोनी ने अपने भाँजे को आवाज लगाई जो कि सामने वाली गली में अपने दोस्त के पास था। वो भी बेमन से आया और आते ही बोला ‘फुफूओ तुमने तो उस कालू की पतंग काटी, जो पतंग बेचता है। बोल रहा था कि भाई वे अच्छी पतंग उड़ा रही हैं। मैंने भी कह दिया मेरी फूफूओ हैं।’ 
तीनों हँस पड़ी। हँस कर बोली ‘कुछ कह तो नहीं रही थी अम्मी।’ 
उसने भी ज़ीना लगाया जो किसी ने कमरे के बरामदे में खड़ा कर दिया था। तीनों एक एक कर नीचे उतरीं। पहले साहिबा उतरी, फिर मुस्कान आख़िर में सोनी। गली की महिलाएँ उनके धूप में हुए लाल चेहरे को देख रही थीं। वे कोई सवाल-जवाब करें इससे पहले ही तीनों अपने-अपने घरों में घुस गईं।
छत से उतरने के बाद साहिबा अपने अब्बा के साथ रेहड़ी लगवाने चली गई। वो थकी हुई तो थी ही लेकिन उससे कहीं ज़्यादा खुश थी। क्योंकि आज उसने खूब पतंग लूटी भी और उड़ाई भी। उसने लूटी हुई पतंग अपने पलंग के नीचे रख दी ताकि ख़राब न हो।
 
सोनी मंसूरी। 
अंकुर की नियमित रियाज़कर्ता है। इन्हें शेरो शायरी का शौक है। ये सुंदर नगरी में रहती हैं। 

Previous
Previous

आख़िर हमारी जगह है कहाँ?

Next
Next

ज़रूरतें