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दिल्लीवाली - दिल्लीवाली -

खुशरंग लड़कियाँ

भाई का मेकअप / साक्षी

संडे का दिन यानी स्कूल की छुट्टी। लेकिन आज घर में छुट्टी का माहौल नहीं था। पापा की तो वैसे भी संडे को ड्यूटी होती है। संडे हर किसी के लिए संडे नहीं होता। जब हम कहते कि आज तो संडे है तो पापा अक्सर बोलते कि संडे को संडे मत बोला करो। मम्मी अपने काम से बाहर गई थीं। हमेशा हुड़दंग करने वाली छोटी बहन भी उनके साथ गई थी। बड़ी बहन छत पर धूप में बैठ कर बिंदी का माल बना रही थी।

ख़ाली घर और बोरिंग लग रहा था। घर का सारा काम करने के बाद भी समझ नहीं आ रहा क्या करूँ! कभी पलंग पर लेटती तो कभी कमरे का चक्कर लगाने लगती। स्कूल की सहेलियों की याद आ रही थी। यूँ तो मैं अपने घर के सारे काम मस्ती से करती हूँ। घर आते ही मुझे सिर्फ़ काम ही दिखाई देता है। आज तो लग रहा था जैसे सारे काम भी छुट्टी पर गए हैं या मुझे दिख ही नहीं रहे हैं। मैंने कमरे में नज़र घुमाई तभी मेरी नज़र घड़ी पर गई, जो मेरे घर की चौखट के सामने से दिखती है। उसमें तो सिर्फ़ 12 ही बजे हैं। मैं सोचने लगी कि अब क्या करूँ ख़ाली बैठे-बैठे? मैंने सोचा स्कूल का काम ही कर लूँ। स्कूल के काम के बारे में सोचने पर भी बोरियत होने लगी। मेरा मूड तो कुछ मस्ती करने का कर रहा था। तभी मेरी नज़र अपने छोटे भाई पर गई। उसका प्यारा-सा चेहरा देख कर मुझे बहुत प्यार आया। फिर मैंने उसके चेहरे को गौर से देखा। तभी मेरे मन में एक आइडिया आया कि क्यों न इसके चेहरे पर मेकअप ट्राई किया जाए? वह तैयार भी हो जाएगा और मेरे मेकअप की प्रैक्टिस भी हो जाएगी।

मैं मेकअप का सामान निकालने के लिए अलमारी की तरफ़ बढ़ी। पलंग के बराबर में ही हमारी अलमारी है। हमारी अलमारी को बने वैसे दो साल ही हुए हैं। लकड़ी की बनी अलमारी चॉकलेटी रंग की है। वह लकड़ी की बनी हुई है उसका रंग चॉकलेटी है। इस अलमारी के बनने के बाद मम्मी सहित हम सभी भाई-बहन बहुत खुश हुए थे। इसके अंदर जगह अच्छी है और अब ज़्यादातर चीज़ें इसमें रखी रहती हैं तो घर बिखरा हुआ नहीं लगता। इस लंबी अलमारी में चीज़ें ज़्यादा ठूस न दी जाएँ, मम्मी हमेशा इसका ख़्याल रखती हैं। हमें कहती हैं कि गंदी-संदी चीज़ें इसमें मत रखा करो।

मैंने एक जूते के डिब्बे को अपना मेकअप बॉक्स बना लिया था। यह डब्बा मेरी बहन की सहेली ने उसे दिया था, मेकअप का सामान रखने के लिए। हम दोनों बहनों ने इस डब्बे में अपना सारा मेकअप का सामान रख दिया। हम बहनें जब मेकअप करना सीखती हैं तो मम्मी नाराज़ नहीं होती हैं। वो तो कहती हैं कि अच्छे से सीख लो। बाद में ब्यूटीशियन का कोर्स भी किया जा सकता है। अपनी अलमारी खोल कर मैंने दो पीले रंग की चुन्नियाँ निकालीं। इसके साथ ही मेकअप बॉक्स भी निकाल लिया। फिर मैंने अपने भाई नक्श को आवाज़ लगाई। मेरी आवाज़ सुनते ही वह तुरंत आ गया। मैंने उससे कहा- “नक्श एक बात सुन। मैं तुझे दुल्हन की तरह तैयार करती हूँ।”

नक्श ने बोला- “आज क्यों तैयार करोगी मुझे? रोज़ तो तैयार नहीं करती तुम मुझे। कंघी भी ठीक से नहीं करती हो मेरी!”

मैंने कहा-“आज मेरे पास टाइम है न। देखना तू कितनी सुंदर दुल्हन बनेगा।”

नक्श को भी उत्सुकता हो गई थी। उसे लगा यह बढ़िया खेल होगा। उसने पूछा-“तू पहले मेरा क्या करेगी, कोई काम तो नहीं करवाएगी न मुझसे, मैं अच्छा लगूँगा न?”

मैंने कहा- “तू देख तो कितना मजा आएगा। और तू आठ साल का हो गया है, अब तुतला कर क्यों बोलता है? लेकिन मेकअप करवा कर तू और सुंदर लगेगा।”

नक्श ने थोड़ा चिढ़ कर कहा- “क्या मैं तुझे लड़की जैसा दिखता हूँ।”

मैंने उसके गालों को हिलाते हुए कहा-“बात लड़की जैसे दिखने की नहीं है। देख तो सही तू कितना सुंदर है। तेरी नाक और आँखें कितनी सुंदर हैं।”

नक्श की आँखें थोड़ी बड़ी और उभरी हुई हैं। उसकी नाक भी पतली-सी है। फिर मैं बोली – “आ जा जल्दी करूँ तेरा मेकअप। फिर अच्छी-सी फ़ोटो खीचूँगी। इधर आकर बैठ जा।”

उसने बोला, “नहीं मैं नहीं करवा रहा, मैं खेलने जा रहा हूँ अपने दोस्त के साथ।”

मैंने बोला, “बाद में खेलने चले जाना।” उसने बोला, “नहीं, नहीं मैं जा रहा हूँ।” फिर मैंने नक्श से बोला, “देख ले फिर तुझे अपने साथ घुमाने नहीं ले जाऊँगी। मेले में भी नहीं ले जाऊँगी।” अब नक्श मान गया था। 

सबसे पहले मैंने उसकी कमर पर एक पीली चुन्नी को साड़ी की तरह बाँध दिया। फिर दूसरी चुन्नी से उसका लंबा आँचल बना कर दुल्हन का घूँघट-सा बना दिया। मैंने उसे कुर्सी पर बिठा दिया। कुर्सी के पीछे खड़े होकर मैं उसका मेकअप करने लगी। सबसे पहले मैंने उसके चेहरे पर थोड़ा फाउंडेशन लगाया। शनि बाजार से मैं मेकअप ब्लेंडर लेकर आई थी। ब्लेंडर से मैं उसके चेहरे को थपथपाने लगी ताकि फाउंडेशन और पाउडर अच्छे से मिल जाए। जैसे ही मैंने उसकी आइब्रो ठीक करने की कोशिश की उसने कहा, “इस पेंसिल से क्या लिख रही मेरी आई ब्रो के पास?”

मैंने कहा, “अरे पागल ये पेंसिल नहीं है। जिनकी आईब्रो ठीक नहीं होती इससे सुंदर हो जाती है।”

नक्श को अब मजा आ रहा था। बार-बार चेहरा थपथपाने से उसे नींद आ रही थी। जब मैं उसके बाल बनाने लगी तो वह नींद में झुकने ही लगा। मैं उसे थपकी देकर उठा देती। नक्श की छोटी-सी प्यारी चुटिया बन गई थी। अब बारी थी लिपिस्टिक लगाने की। लिपिस्टिक लगते ही नक्श बोला, “मेरे होठों पर यह क्या लगा दिया।”  मैं बोली, “अरे पागल तुझे पता नहीं कितना अच्छा लग रहा है।”

अब नक्श दुलहन की तरह तैयार था। कमरे में गोंद की गंध पसरते ही मुझे लग गया कि बड़ी बहन छत से नीचे आ गई है। उसके कमरे में दाखिल होने से पहले मैंने नक्श का मेकअप पूरा किया और मेकअप बॉक्स को अलमारी में रख दिया।

बड़ी बहन का चेहरा बहुत थका हुआ लग रहा था। नक्श को देखते ही वह हँसने लगी। मैंने कहा, “देखो कितना सुंदर लग रहा है नक्श।”

हँसते-हँसते मेरी बहन के पेट में दर्द हो गया। मैंने पूछा, “तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या?”

उसने नक़्श की तरफ़ देखा और बोलने लगी, “क्या बंदर बना दिया है तूने, देखियो बेचारे को।”

नक्श जो अभी तक खुद को देख कर खुश था, यह सुन कर रुआंसा हो गया। उसने चुन्नियों से बनी साड़ी खोल दी और पानी से मुँह धोने लगा। सच बोलूँ तो मेकअप के बाद नक्श बहुत सुंदर और प्यारा लग रहा था। वह भी खुश हो रहा था। लेकिन बहन के बोलने के बाद नक्श को लगा कि मैंने उसके साथ कुछ गलत कर दिया है। मुझे पता नहीं चल रहा था कि अब वह मेरे मेकअप करने से गुस्सा है या बहन की बातों से। मेरी बहन बोलने लगी, “एक तो तूने मेकअप का सामान बर्बाद किया। दूसरे पापा को पता चल गया कि तूने इसे लड़की बनाया है, तो तुझे बहुत डाँट पड़ेगी।”

अब मुझे डर लगने लगा कि कहीं मुझे आज डाँट न पड़ जाए। मेरे पापा को तो वैसे भी हमारा मस्ती करना पसंद नहीं है। शाम होने तक मेरी मस्ती डर में बदलने लगी। मैं बहाने सोचने लगी। फिर थक-हार कर फैसला किया कि अगर पापा डाँटेंगे तो चुपचाप डाँट सुन लूँगी। कौन-सा पहली बार डाँट सुनूँगी। पापा और मम्मी दोनों ही शाम सात बजे घर आए। मैंने उन्हें चाय बनाकर दी। मम्मी ने नक्श के हाथ से फ़ोन छीन लिया और उसे डाँट कर कहने लगी, “क्या सारा दिन फ़ोन में लगा रहता है, जा जाकर ट्यूशन का काम कर।”

पापा अभी भी चाय पी रहे थे। फिर मेरी बहन ने बोला कि अरे मम्मी देखा नक्श कितना सुंदर लग रहा था। मेरा दिल धड़कने लगा। मम्मी ने पूछा क्या हुआ। बहन ने बताया कि कैसे मैंने नक्श को आज लड़की बना दिया था। मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी। पापा कहने लगे, “अरे नक्श को कहो इन लड़कियों से दूर रहा करे। कल को लिपिस्टिक, मेकअप पसंद आने लगेगा तो लोग इसे लड़की समझेंगे।”

मम्मी ने फ़ोटो देखने के लिए फ़ोन उठाया। बहन भी पास आकर हँसते हुए बैठ गई। लेकिन फ़ोन में नक्श की दुल्हन वाली कोई फ़ोटो नहीं थी। बहन भी चौंक गई। बहन ने तो  सिर्फ़ नक्श को देखा था, उसे लगा फ़ोटो तो खींची गई होगी। लेकिन फ़ोन में नक्श के लड़की बनने की कोई फ़ोटो नहीं थी इसलिए मामला जल्दी ही ख़त्म हो गया। मम्मी और बहन रात का खाना बनाने लगी। पापा को गुस्सा आया ही नहीं क्योंकि फ़ोन में फ़ोटो ही नहीं थी। रात में खाना खाने के बाद हम सोने चले गए। नक्श मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उससे पूछा कि फोटो तुमने डिलीट कर दी थी क्या? नक्श ने कहा, “हाँ, मुझे लगा बहन मेरी लड़की वाली फ़ोटो सबको दिखा देगी। इसलिए मैंने डिलीट कर दी थी।”

नक्श ने फिर कहा, “लड़की जैसा दिखना बुरा है क्या? लड़की जैसा दिख कर मुझे बुरा नहीं लगा था। मुझे तो मैं सुंदर लग रहा था।” मैंने नक्श को कहा, “तूने आज मुझे बचा लिया।” नक्श हँसने लगा।

इसके बाद से मैंने नक्श को कभी लड़की नहीं बनाया। नक्श पूरी तरह लड़कों जैसा ही है। लेकिन लड़की बन कर उसे बुरा नहीं लगा था यही सोच कर आज भी मुझे अच्छा लगता है। काश, नक्श की वह मेकअप वाली फ़ोटो डिलीट नहीं हुई होती।

चाँदनी की चाऊमीन पार्टी / महकनूर

‘हाँ जी सुनो, क्या कोई फैशन शो चल रहा है? चलो, चलो बहुत फैशन हो गया अब दो चोटी बना लो।’ चाँदनी ने स्कूल पहुँचते ही गैलरी में खड़ी लड़कियों के सिर की तरफ़ देख टीका-टिप्पणी शुरू कर दी। जिन लड़कियों के बाल दो चोटियों में नहीं बँधे थे वह उन्हें देख कर सिर हिला कर कुछ यूँ कहती दिखती - अच्छा आज तुम्हें बताती हूँ। कुछ लड़कियाँ उसे देख कर मुस्कुराने लगीं तो कुछ मुँह बनाने लगीं। चाँदनी के स्कूल में आते ही कुछ ऐसा ही माहौल होता है। आख़िर स्कूल की हेड गर्ल जो ठहरी।

हर कक्षा की तरह इस बार 11वीं कक्षा की टॉपर बनी चाँदनी का पूरे स्कूल में दबदबा है। हेड गर्ल बनने के बाद से तो वह खुद को प्रिंसिपल मैडम जैसी ही समझने लगी है, मानो पूरे स्कूल का ध्यान रखना उसी की जिम्मेदारी हो। वह किसी की भी शरारत को बख्शती नहीं है और फौरन अपनी कापी में उसका नाम नोट कर लेती है। कभी-कभी तो उसकी शिकायतों की लंबी लिस्ट को देख कर क्लास टीचर भी हँस देती थी कि भई आज तो कोई भी नहीं बची।

हेड गर्ल बनने के बाद से स्कूल की लड़कियों ने उसे चमची चाँदनी भी कहना शुरू कर दिया क्योंकि वह लड़कियों की हर शरारत क्लास टीचर तक पहुँचा देती थी। चाँदनी चश्मा पहनती थी इसलिए उससे नाराज़ लड़कियाँ उसे चमची चाँदनी के साथ चश्मिश चाँदनी भी कहती थीं। कुछ लड़कियाँ उसे देखते ही डबल बैटरी सिंगल पावर कहने लगती थीं।

मज़ेदार बात यह है कि दो चोटी मिशन में जुटी चाँदनी खुद के बालों की दो चोटियाँ नहीं बनाती थी। एक बार एक लड़की ने कहा कि तू खुद दो चोटी क्यों नहीं करती जो पूरे स्कूल की लड़कियों पर हुक्म चलाती है। चाँदनी ने अपना सिर उसकी तरफ़ झुकाते हुए कहा, “ले मेरे इन छोटे बालों की तू ही चोटी बना दे।” उस लड़की ने भी उसके बालों को समेटते हुए कहा, “लो बन गई चोटी।” अपने गर्दन तक के बालों को छोटा बताते हुए चाँदनी इस बात पर अड़ी रही कि उसके बाल चोटियों के लायक नहीं। यह दूसरी बात है कि और लड़कियों के लिए उतने ही बड़े बालों पर दो चोटियाँ बनाने का हुक्म सुना दिया जाता था।

स्कूल की बहुत-सी लड़कियों को यह बात अच्छी नहीं लगती कि इतनी खड़ूस चाँदनी को क्लास टीचर मैम बहुत समझदार समझती हैं। चाँदनी को तो हर मैम पसंद करती हैं। एक दिन एक लड़की ने चाँदनी की शिकायत करते हुए मैम से कहा, चाँदनी बहुत चालू है।”

मैम ने हँसते हुए जवाब दिया, “चालू मतलब...?”

“मतलब जो बंद न हो।”

“तो बंद क्यों होना। सारी लड़कियों को चालू होना चाहिए।”

उस लड़की को समझ नहीं आया कि मैम ने चालू जैसे खराब शब्द की तारीफ़ कैसे कर दी। धत्त इस चाँदनी की शिकायत भी करने जाओ तो तारीफ़ ही निकल जाती है। स्कूल में लड़कियों का एक ग्रुप ऐसा भी है जो चाँदनी का बहुत बड़ा फैन है। चाँदनी अपने इन दोस्तों का खास ख़्याल रखती है। असेंबली लाइन में देरी से पहुँचने वाली लड़कियों को वह लाइन में लगवा कर टीचर की डाँट से भी बचा लेती है।

स्कूल की असेंबली में प्रार्थना चाँदनी ही करवाती। असेंबली में अखबारों की हेडलाइंस भी वही पढ़ती थी। अखबारों की हेडलाइंस पढ़ते वक़्त चाँदनी को ऐसा लगता जैसे वह टीवी पर न्यूज पढ़ने वाली एंकर हो। यह सोच कर वह हेडलाइंस को और अच्छे से पढ़ती। मंच पर चढ़ते ही चाँदनी के चेहरे की चमक बढ़ जाती थी। तब उसे लगता था कि वह वाकई उन लड़कियों को हेड कर रही है जो उससे थोड़े नीचे मैदान में खड़ी होकर उसे सुन रही हैं। स्कूल का यह वक़्त चाँदनी को सबसे अच्छा लगता था।

मेरी सहेली सना के लिए तो चाँदनी एकदम हीरोइन है। एक दिन सना को कुछ लड़कियाँ चाँदनी की चमची कह कर चिढ़ा रही थीं। सना को पता था कि अब इन लड़कियों का पोपट होने वाला है। लड़कियाँ असेंबली में जाने के पहले अपने वाटर बोतल गैलरी की दीवार पर रख देती थीं। सना से पंगा लेने के दो दिन बाद असेंबली खत्म होते ही लड़कियों ने दीवार से अपनी-अपनी बोतल उठा कर पानी पीना शुरू किया। पानी पीते ही वे थू-थू करने लगीं। सना की हीरोइन चाँदनी ने अपना काम कर दिया था। उसने लड़कियों की वाटर बोतल में शौचालय के नल में आने वाला गंदा पानी भर दिया था। लड़कियों को पूरे दिन पानी का वह स्वाद याद कर उल्टी जैसा महसूस होता रहा और वे सना और चाँदनी को कोसती रहीं।

एक दिन चाँदनी के दोस्तों के ग्रुप में से वाजदा ने कहा कि उसने बहुत दिनों से चाऊमीन नहीं खाई है। चाँदनी ने तुरंत एलान किया, “चलो चाऊमीन पार्टी करते हैं।” लेकिन सभी लड़कियों के पास चाऊमीन के लिए पैसे नहीं थे। चाँदनी ने तय करवाया कि जिन लड़कियों के पास पैसे हैं उनसे मिला कर जिनके पैसे नहीं हैं काम चल जाएगा। सबने चाँदनी की लीडरशिप में पैसे इकट्ठे किए और चल पड़ीं ‘अहान चाऊमीन कार्नर’ की ओर। अभी स्कूल छूटा था तो चाऊमीन की उस छोटी-सी ठेलेनुमा दुकान पर काफ़ी भीड़ थी। लड़कियों को वहाँ पहुँच कर लगा कि इतनी भीड़ में चाऊमीन खाने में देर हो जाएगी। लेकिन ‘अहान चाऊमीन कार्नर’ को चलाने वाला लड़का चाँदनी को जानता था। चाँदनी को देखते हुए मुस्कुराया और बोला, “जल्दी बताओ कितने की बनाऊँ?”

चाँदनी ने कहा, “छह हाफ प्लेट।”

चाऊमीन वाले ने और लोगों के लिए प्लेट बनानी बंद कर पहले चाँदनी एंड कंपनी की प्लेट तैयार कीं। प्लेट तैयार करते  वक़्त पूछा, “तीखा न।”

चाँदनी ने कहा, “हाँ, हाँ तीखा बनाना।”

मैं और सना चाँदनी का यह जलवा देख कर खुश थे। जिन लड़कियों ने पैसे नहीं दिए थे वे प्लेट लेने में झिझक रही थीं। चाँदनी ने सबसे पहले उन लड़कियों को प्लेट पकड़ाई जिनके पास पैसे नहीं थे। चाऊमीन खाते वक़्त वाजदा को बहुत मिर्ची लगी तो चाँदनी ने तुरंत अपने बैग से बोतल निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। सना ने कहा,”ध्यान से वाजदा चाँदनी अपनी चाऊमीन पार्टी में टायलेट का पानी न पिला दे।” इसके बाद सभी लड़कियाँ ज़ोर से हँसने लगी। कुछ दूर खड़े लड़कों को मस्ती में चाऊमीन खाती लड़कियाँ अच्छी नहीं लग रही थी। खासकर जिस तरह चाँदनी लीड कर रही थी तो लड़कों को लगा कि बहुत हीरोइन बन रही है, इसे परेशान करना चाहिए। उधर चाँदनी ने कहा, “पैसे बच गए हैं चलो एक-एक आईसक्रीम खाते हैं।”

चाँदनी और उसकी दोस्तों ने चाऊमीन की प्लेट कचरा-डिब्बे में डाली और आगे बढ़ गईं। तभी एक बाइक आगे आई। उस पर पीछे बैठे लड़के ने चाँदनी की कमर पर हाथ मारा। चाँदनी ने उसके बढ़े हाथ को खींच दिया और लड़का बाइक से गिर पड़ा। उसके गिरने के झटके में चाँदनी भी गिर गई। अपनी चोट की परवाह न कर वह लड़के पर झपट पड़ी। उसने उसके गाल पर चांटों की बरसात कर दी। मैं और सना यह देख कर डर गई। हम सब बगल की दुकान की पटिया पर खड़े हो गए। जो लड़का बाइक चला रहा था उसे गिरने के कारण चोट लगी थी तो वह भी पटिया पर आकर बैठ गया। सना ने उसे एक लात मारी तो वह पटिया से गिर गया। लेकिन, वह बिना कुछ बोले दूसरी तरफ़ जाकर बैठ गया।

चाँदनी अभी तक उस लड़के की पिटाई कर रही थी। आसपास की औरतें खड़ी होकर बोलने लगीं, “देखो इस पिद्दी-सी लड़की ने कैसे इस लड़के का कचूमर निकाल दिया।” एक आंटी ने बोला, “ये लड़के ऐसे ही हैं, इनका ऐसे ही इलाज होना चाहिए।” तब तक वह लड़का चाँदनी के चंगुल से छूट कर भागा। चाँदनी को भी काफ़ी चोट लगी थी तो वह पटिया पर बैठ कर हाँफने लगी। चाँदनी के मुँह से बहुत गंदी गालियाँ निकल रही थीं। सारी औरतें उसकी तारीफ़ कर रही थीं कि लड़कियों को ऐसी ही होना चाहिए, सड़क पर बदतमीजों को धुन देना चाहिए। एक आंटी ने सना और वाजदा की तरफ़ देखते हुए कहा, “तुम दोनों तो इससे हट्टी-कट्टी हो फिर भी अलग-थलग खड़ी रही। ऐसी डरपोक दोस्तों का क्या काम।” यह सुन कर सना की आँखों में आँसू आ गए। सना को अपने लिए डरपोक शब्द अच्छा नहीं लगा। सना को यह सबकुछ अच्छा नहीं लग रहा था।

चाँदनी की इस चाऊमीन पार्टी की खबर स्कूल में प्रिंसिपल मैडम तक पहुँची। स्कूल के सफ़ाई कर्मचारियों ने मैडम को चाँदनी की बहादुरी के किस्से सुनाए। दोपहर में लंच के बाद प्रिंसिपल मैडम ने चाँदनी को बुलाया। उन्होंने चाँदनी को पूरी बात बताने को कहा। चाँदनी ने उन गंदी गालियों के बारे में भी बताया जो उसने लड़कों की पिटाई करते वक़्त दी थी।

“मैम क्या मेरी बहादुरी की खबर अखबार में छप सकती है?’ चाँदनी के इस सवाल पर प्रिंसिपल मैडम चौंकी।

“क्यों छपनी चाहिए यह खबर?” उन्होंने पूछा।

“मैडम मेरी बहादुरी की खबर से और लड़कियों को प्रेरणा मिलेगी। मेरी खबर छपी तो मैं अपनी हेडलाइंस को असेंबली में पढ़ूँगी। कितना अच्छा रहेगा कि हेडलाइन छपे- चाँदनी ने गुंडे को चकनाचूर किया।”

प्रिंसिपल मैडम ने कहा, ”चाँदनी तुम बहादुर हो अच्छी बात है। तुम ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा हो और सामाजिक विज्ञान भी पढ़ती हो। सड़क पर खुद इंसाफ़ करना अच्छी बात नहीं है।”

चाँदनी को लगा मैडम कितनी खराब हैं, उसकी बहादुरी से जल रही हैं। उसने मन ही मन सोचा वहाँ सड़क पर आंटियाँ  मेरी बहादुरी की तारीफ़ कर रही थीं और ये गलत बता रही हैं।”

मैडम ने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, “देखो चाँदनी, अगर उस झगड़े में तुम्हें ज़्यादा चोट आ जाती तो क्या होता? तुम्हारे हाथ-पाँव टूट सकते थे। तुम तो बुद्धिमान लड़की हो और रोज़ अखबार पढ़ती हो। खबरें तो पढ़ती होगी कि सड़क पर के ऐसे झगड़ों में जान भी चली जाती है। आगे से ऐसी कोई बात हो तो सड़क पर किसी को घसीट कर पीटने से अच्छा है कि तुम घर में या स्कूल में ये बात बताओ। हमें चाहिए कि पुलिस में शिकायत करें। यह जिम्मेदारी पुलिस की है कि उन लड़कों को क्या सजा मिलनी चाहिए।”

लेकिन मैडम एक दिन मैंने अखबार में खबर पढ़ी थी कि पुलिस थाने ने पंद्रह अगस्त पर उस लड़की को सम्मानित किया जिसने बाइक से घसीटे जाने पर भी चेन झपटमारों का मुकाबला किया। क्या यह बात गलत है?

प्रिंसिपल मैडम ने शांत भाव से कहा, “हाँ चाँदनी बिल्कुल गलत है। अगर उस लड़की की जान चली जाती तो? सड़क पर छेड़खानी को रोकना जरूरी है, लेकिन इसके लिए खुद मार-पिटाई नहीं करनी है।”

चाँदनी को लगा कि प्रिंसिपल मैडम पागल हैं। बहुत बड़ी जलनखोर हैं। वो तो सोच रही थी कि यह खबर अखबार में छप जाती तो हो सकता है, 15 अगस्त को पुलिसवाले उसे ही बहादुरी का अवार्ड देते। अवार्ड की खुशी में वह फिर चाऊमीन पार्टी करती।

प्रिंसिपल मैडम ने फिर कहा, “चाँदनी तुम अखबार की हेडलाइन बहुत अच्छा पढ़ती हो। क्या तुमने अखबार में कभी कोई गाली लिखी हुई देखी है।”

“नहीं”, चाँदनी ने कहा।

प्रिंसिपल मैडम ने आगे पूछा-“क्या कभी किसी न्यूज़ पढ़ने वाली को गाली देते सुना है”? चाँदनी ने कहा-“नहीं”।

प्रिंसिपल मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा-“बिल्कुल ठीक। ऐसा इसलिए कि एक गलत बात के जवाब में दूसरी गलत बात कर देना सही नहीं हो सकता है। बहादुरी और बुद्धिमानी इसमें है कि हम ज्यादा गुस्से में न आकर सड़क पर अपना नुकसान करने से बचें। हम बताएँ कि सड़क पर क्या गलत हो रहा है और जिनकी जिम्मेदारी है वो सही करेंगे। अच्छा याद करो एक बार स्कूल के गोदाम से सरकार की तरफ से आई वर्दियों की चोरी करते हुए एक लड़का पकड़ा गया था”।

“हाँ याद है”। चाँदनी ने सिर हिलाते हुए कहा।

“तो क्या मैंने उसकी पिटाई की? उसे गालियाँ दीं? मैं तो प्रिंसिपल हूँ। तुम्हारे हिसाब से मुझे यही करना चाहिए था?”

प्रिंसिपल मैडम की इस बात पर चाँदनी चुप थी। उन्होंने आगे कहा-“मैंने बस आगे शिकायत भेज दी, और उस लड़के को स्टोर कीपर के काम से हटा दिया गया। यही हुआ था न।” तभी स्कूल की छुट्टी की घंटी बज गई। प्रिंसिपल मैम ने चाँदनी से कहा-“अच्छा अब तुम घर जाओ। हम फिर एक बार बात करेंगे।”

चाँदनी प्रिंसिपल मैडम के रूम से बहुत गुस्से में निकली। उसके मुँह से बार-बार यही लग रहा था जलनखोर। पूरी रात चाँदनी ने बिस्तर पर करवट बदलते हुए प्रिंसिपल मैडम की बात पर सोचा और सुबह होने के पहले तय किया कि उसे क्या करना है। अगली सुबह चाँदनी स्कूल में एक माँग-पत्र पर सभी लड़कियों से दस्तखत ले रही थी। माँग-पत्र में पास की पुलिस चौकी से कहा गया था कि स्कूल के पास पुलिस वालों की गश्त बढ़ाई जाए। इसके साथ ही उन लड़कों पर कार्रवाई करने की माँग की जिन्होंने चाँदनी के साथ छेड़खानी की थी। इसके एक हफ़्ते बाद चाँदनी स्कूल पहुँची तो स्कूल के गेट पर खड़े पुलिसवाले अंकल ने उसे ‘गुड मार्निंग’ कहा। चाँदनी ने चौंकते हुए पूछा-“आप मुझे जानते हैं”?

पुलिसवाले अंकल ने कहा- “हाँ, सीसीटीवी में देखा था तुम्हें एक लड़के की पिटाई करते।”

चाँदनी हँसते हुए स्कूल के अंदर चली गई। स्कूल के गेट पर पुलिसवाले अंकल का खड़ा होना उसे बहुत अच्छा लगा।

चाँदनी की चाऊमीन पार्टी का यह किस्सा स्कूल में खूब मिर्च-मसाले के साथ सुनाया जाने लगा। सबसे खास तो पंद्रह अगस्त का दिन रहा। स्कूल में झंडा फहराने के बाद प्रिंसिपल मैडम ने चाँदनी की तारीफ़ करते हुए कहा कि कैसे उसकी वजह से स्कूल के आस-पास पुलिस सुरक्षा बढ़ गई और अब सड़क की दुकान पर चाऊमीन पार्टी करने में लड़कियों को कोई परेशानी नहीं होती। प्रिंसिपल मैम के कहने पर वहाँ मौजूद सभी लोगों ने चाँदनी के लिए ताली बजाई।

दूसरे दिन प्रिंसिपल मैडम के सहायक चाँदनी की क्लास में आकर अखबार देकर गए। हालांकि चाँदनी ने पहले पेज की हेडलाइन तो असेंबली में पढ़ी थी। उसने देखा कि अखबार के पहले पन्ने पर प्रिंसिपल मैडम ने लिख कर भेजा था-‘पेज चार पढ़ो’। चाँदनी ने अखबार के पेज चार पर कोने में एक रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट का नाम था- ‘चाँदनी की चाऊमीन पार्टी’। कैसे एक लड़की ने अपने स्कूल की सभी लड़कियों के लिए सड़क को सुरक्षित कर दिया।

 चाँदनी ने क्लास में अपनी दोस्तों की तरफ़ देखते हुए हल्ला किया-आज मेरी तरफ़ से चाऊमीन पार्टी।

अलग सी लड़कियाँ / मंतशा

लंच ब्रेक होते ही हम इन दिनों के अपने पसंदीदा काम में जुट गए। ज़्यादातर लड़कियों के रोजे चल रहे थे तो हमें लंच करना नहीं था। अब लंच ब्रेक में एक ही काम था कि हम सब बैठ कर मीठी ईद पर घूमने की जगहों की लिस्ट बनाते थे। इसके साथ ही सबसे जरूरी काम पैसों का हिसाब लगाना भी था। हम सारी सहेलियों को मीठी ईद का बेसब्री से इंतज़ार  था। कई दिनों से हम ईद पर अलग और बढ़िया-सी जगह पर घूमना चाहते थे। आखिरकार ईद का ही तो ऐसा दिन होता है जब हमें सहेलियों के साथ बाहर घूमने की छूट होती है। हमारे घरवाले हम पर ज़्यादा रोक-टोक नहीं लगाते हैं।

चाँद रात आ ही गई। इधर हमने चाँद का दीदार किया और उधर सारे मोहल्ले में ईद मुबारक की गूंज हो गई। पटाखे फूटने लगे और सुबह की तैयारियाँ होने लगी। चाँद को देखते ही मैंने सोचा कि अगली सुबह कितनी अच्छी होगी। हमारी मनपसंद जगह घूमने का आजाद दिन होगा। मैंने रात को ही कुरान शरीफ के कपड़े में रखे अपने पैसे निकाल कर गिने। पूरे 400 रुपये थे। कभी-कभार रिश्तेदार जो सौ-पचास रुपये पकड़ा जाते थे, ये वही जमा किए हुए थे। मैंने पैसे अपने स्कूल बैग की अंदर वाली पॉकेट में रखे ताकि कोई इसे देख कर ख़र्च न कर दे। अम्मी इसे देख कर मेरी ईदी का बजट ही कम न कर दें।

सुबह उठते ही मैंने अपने हाथों से सिले जॉर्जेट के सूट को इस्त्री किया। सभी को सलाम किया। रसोई में बाजी की मदद करने के बाद मैंने बालों में शैंपू किया। गीले बालों को तौलिए में लपेट मैं अपना मेकअप करने लगी। अम्मी बार-बार मेरे चेहरे की ओर देख रही थीं। शायद उन्हें मेरे लिपिस्टिक का रंग ज़्यादा ही गहरा लग रहा था। पर, आज के दिन अम्मी ज़्यादा अगर-मगर नहीं करती हैं। कुछ नापसंद लगने पर भी चुप रह जाती हैं।

कुछ देर बाद मेरी सहेलियाँ  मेरे घर आईं और अम्मी को ईद मुबारक कहा। अम्मी ने शीशे की कटोरियों में जैसे ही सेवइयाँ  निकालीं हम सबने एक साथ कहा कि हमें नहीं खाना। मेरी एक सहेली ने कहा, “आंटी घर का खाना तो रोज़ खाते हैं। आज तो बाहर का कुछ खाने के लिए पेट खाली होना चाहिए।” अम्मी उसकी बात सुन कर हँसने लगी। हमारी टोली घर से निकल पड़ी थी। अम्मी ने दरवाज़े पर आकर ताकीद की, “समय से लौट आना। फ़ोन न करना पड़े। सुन रही है न मंतशा?” मैं और मेरी सारी सहेलियाँ अम्मी को बाय कहते हुए चुपचाप गली से निकल गए।

ईद पर शनिबाजार में भी मेला लगता है। लेकिन यहाँ बड़ी उम्र के लड़के-लड़कियाँ नहीं घूमते हैं सिर्फ़ छोटे बच्चे ही घूमते हैं। हम सभी सहेलियों ने तय किया हुआ था कि हम सभी दिलशाद गार्डन घूमने जाएँगे। वहाँ बहुत सारी खाने-पीने की जगहें हैं। रास्ते में मुझे मामा की लड़की महक मिल गई। मेरे साथ मेरी दो दोस्त और थी। उन्होंने मुझे देखा और कहने लगी कि हमारे साथ घूमने चलोगी? मैंने गर्दन हिलाकर मना कर दिया क्योंकि मुझे अपनी दोस्तों के साथ घूमने में ज़्यादा मज़ा आता है। मैंने कहा, “हमारा तो पहले से ही दिलशाद गार्डन में घूमने का प्लान बना हुआ है।”  

महक ने मुझसे कहा, “हम तुझे ऐसी जगह पर ले जाएँगे जहाँ तू आज तक नहीं गई होगी।” वो हमसे जिद करने लगी। अब हम सबके मन में उस जगह को देखने की इच्छा हुई। मैं अपने मन में सोचने लगी कि ऐसी कौन-सी जगह है जहाँ मैं नहीं गई। मैं थोड़ी डर भी गई। मैंने हड़बड़ाहट में कहा, “बाजी तुम हम सबको कहीं दूर तो लेकर नहीं जा रही? अगर ऐसा है तो पहले बता देना क्योंकि मेरा भाई देख लेगा तो वो अम्मी से मेरी शिकायत कर देगा और मेरा घर से बाहर निकलना भी बंद करवा देगा।”                   

मेरी गर्दन पर हाथ मार कर वो कहने लगी, “पागल! अगर मुझे कहीं दूर जाना होता तो तुम बच्चा पार्टी को थोड़े ही लेकर जाऊँगी।” मेरी दोस्त ने मेरी तरफ़ देख कर हामी भरी। मैंने उन्हें कहा कि चलो चलते हैं। महक ने कहा, “हुरर्रे... कितनी देर में तुम लोग मानी हो।” मैंने कहा, “चलें!” महक ने कहा, “गगन के पास चलो, वहाँ से ई-रिक्शा लेंगे।”

हम सभी शनिबाजार वाली सीधी रोड से निकले। ईद की वजह से आज सारे बाज़ार में झालर लगी थी जिनकी आवाज़ हवा के साथ-साथ हमारे कानों में पड़ रही थी। उसी के साथ मुर्गा मार्केट की बदबू भी थी। हम सभी चुन्नियों और स्कार्फ  से चेहरा ढक कर गगन पहुँचे। बदबू से मेरा सिर ही चकरा गया। हम इस जगह से कम ही गुजरते हैं। मैंने सोचा कि जो लोग यहाँ  काम करते हैं, उन्हें इस बदबू की आदत हो गई होगी। 

हम सब गगन सिनेमा पहुँच गए। महक ने ई-रिक्शेवाले से कहा, “अंकल हम सबको चेतक कॉम्प्लेक्स जाना है, कितने रुपये लगेंगे वहाँ जाने में?” रिक्शेवाले ने कहा कि सौ रुपए लगेंगे। हम सब रिक्शे में बैठ कर चेतक की तरफ़ जाने लगे। तभी महक ने मेरी तरफ़ देखा और बोली, “देख मैं जहाँ तुझे लेकर जा रही हूँ वहाँ से आने के बाद अपने घर में उस जगह के बारे में कुछ मत बताना। ठीक है। समझ आई कि नहीं!”

मैं मन ही मन सोचने लगी कि ये चेतक के बारे में घर पर बताने से मना क्यों कर रही है। मैंने महक से पूछा, “चेतक में क्या होता है?” उसने कहा, “हमारी सुंदर नगरी के रेस्टोरेंट से थोड़ा अलग है पर तुझे वहाँ अच्छा लगेगा। अब चुपचाप बैठ जा। चेतक आनेवाला है।”

अंकल ने ई-रिक्शा रोका और कहने लगे, “लो आ गए चेतक, अब उतर जाओ”। महक ने सौ रुपये दिए। हम ई-रिक्शे से उतरे तो मैंने देखा कि वहाँ बहुत सारी कपड़े की दुकान थी। मैंने कहा कि कपड़े खरीदने लाई हो क्या हम सबको? उसने कहा, “चेतक इन दुकानों के अंदर है।”

महक हम सबको दुकानों के अंदर ले जाने लगी। हम सब चेतक के दरवाज़े पर आए तो वहाँ हल्की आवाज़ में गाने बज रहे थे। साथ ही सिगरेट की गंध आने लगी। मुझे खाँसी होने लगी। महक ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई। हम सब भी उसके पीछे चलने लगे। वहाँ बहुत सारे लड़के और लड़कियाँ एक साथ डांस कर रहे थे। आगे की तरफ़ तीन लड़कियाँ स्मोकिंग कर रही थीं। वे अपने मुँह से सिगरेट के धुएँ को छल्ले की तरह निकाल रही थीं।

एक ग्रुप बर्थडे मना रहा था। उस जगह पर डीजे भी लगा था। सभी अपनी-अपनी पसंद का गाना चलवा रही थीं। और अपनी-अपनी पसंद का खाना भी मंगवा रही थीं। पहले तो वहाँ का माहौल देख कर मुझे और मेरे दोस्तों को बहुत घबराहट-सी होने लगी। मेरा दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा। मेरी एक दोस्त कहने लगी, “यार ये जगह बहुत अजीब लग रही है, मुझे तो बहुत डर लग रहा है, चल यहाँ से जल्दी।”

महक ने बोला, “पहली बार तुम सब की ही तरह मुझे भी ऐसे ही लगता था। लेकिन, अब मैं इन सब को देख कर सहज रहती हूँ। यह तो अपनी-अपनी पसंद की बात है कि आप कैसे मजे करते हैं। अगर हमें स्मोकिंग नहीं करनी तो नहीं करनी, लेकिन स्मोकिंग करने वाली लड़कियों को बुरी नज़र से नहीं देखना चाहिए।” मैंने कहा, “लेकिन ये सब करने वाली लड़कियों को ख़राब कैरेक्टर का माना जाता है।”

महक ने कहा, “सिगरेट पीने का कैरेक्टर से क्या संबंध? तब तो चाउमीन खाना और कोल्ड-ड्रिंक पीने को भी ख़राब नज़र से देखना चाहिए। हमें ईद के दिन सिर्फ़ घर की बनी सेवइयाँ ही खानी चाहिए। यह क्या बात हुई कि जितना तक हम करें उतना अच्छा और कोई उससे अलग करे तो बुरा। तू तो उन आंटियों की तरह परेशान हो रही है जो गली में  जींस और टी-शर्ट पहनी लड़कियों को नहीं देखना चाहती। तुम ही तो कहती हो कि आंटी को जींस न पहनना है तो न पहनें, हमारे पहनने से क्या परेशानी है? जींस तो हमने अपने शरीर पर डाला है न?”

मुझे और मेरी सहेलियों को बात समझ में आ गई। हमारा एक महीने से बनाया प्लान चौपट हुआ तो क्या हुआ, आज हमने अपनी दुनिया से कुछ अलग तरह का तो देखा। हमने वहाँ जम कर डांस किया। उसके बाद हमें भूख लगने लगी। मैंने महक से कहा, “सुन अब हम पम्मी रेस्तरां में जा रहे हैं।” उसने बोला, “क्यों, यहीं खा लो न!” मैंने कहा, “नहीं ये जगह महँगी है वैसे भी उसके खाने का जवाब नहीं।”

महक तो अभी भी सिर्फ़ डांस ही कर रही थी। उसकी कुछ सहेलियाँ भी आई हुई थीं। मैंने सोचा कि ये सभी लड़कियाँ हमारे ही मोहल्ले की हैं, लेकिन कभी इतने खुले अंदाज में नहीं दिखीं। लग ही नहीं रहा ये वही लड़कियाँ हैं। सभी की हालत हमारी जैसी है। हमारे अम्मी-अब्बू हमें अपने दायरे से बाहर निकलने देने से घबराते हैं। इसके लिए सख्ती भी करते हैं। वहाँ नाच-गा रही लड़कियों को देख कर लगा कि हमें इतना-सा खुश रहने के लिए भी झूठ बोलना पड़ता है। थोड़ा-सा घूमना, खुल कर डांस करना, इन सबके लिए हमें वहाँ आना पड़ता है जिसे हम अपनी दुनिया नहीं मानते हैं।

अब तो मेरी दोनों सहेलियों का भी मन नहीं था चेतक से निकलने का। फिर हमने कहा कि हम अपनी बाकी की सहेलियों को भी यहीं लाएँगे। मैंने घड़ी में समय देख कर कहा, “अरे! दो बज गए। चलो यार, अम्मी की कॉल आ जाएगी फिर हम मस्ती भी नहीं कर पाएँगे।” हमने फटाफट रिक्शा किया और बैठ गए। आज तो रिक्शेवालों की लंबी क़तार थी। मेरी सहेलियाँ खुश थीं कि चलो आज हमने खुलकर डांस किया। एक सहेली बोली, “दोनों लड़कियों को देखा था जो बहुत सुंदर लग रही थीं, कितनी सिंपल थीं न। बस जींस-टॉप पहने हुए थी, काश हम भी पहन लेते।”

मैं अपनी दोनों सहेलियों को देख रही थी। नई जगह पर थोड़ी देर समय बिताने के बाद इनके चेहरे पर भी उन लड़कियों जैसी चमक आ गई थी जो चेतक में मिली थीं। उनके बात करने का अंदाज ही बदल गया था। हम बातें करते-करते ‘पम्मी रेस्टोरेंट’ आ गए। आज तो यहाँ पर बहुत भीड़ है। ज़्यादातर लोग परिवार के साथ आए थे। चेतक में तो बड़े लड़के-लड़कियाँ ही जा सकते थे। पर इस जगह पर हमेशा रौनक लगी रहती है। पेड़-पौधे लाइट सब कुछ है और सबसे अच्छा ये है कि यहाँ हमारी पसंद का खाना मिलता है।  हम सभी ने अपनी-अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया और खूब फ़ोटो खींची।

वहाँ कई और भी लोग मौजूद थे। वे हमें ऐसे देख रहे थे जैसे हमने चेतक में घुसते ही सिगरेट पीती लड़कियों को देखा था। शायद हमारा ज़ोर-ज़ोर से बातें करना उन्हें पसंद नहीं आ रहा था। मैंने और मेरी दोनों सहेलियों ने चेतक कॉम्प्लेक्स वाली लड़कियों की ही तरह पोज बनाए और खूब वीडियो बनाए। हम अपने आसपास के लोगों की उसी तरह परवाह नहीं कर रहे थे, जैसे चेतक में मौजूद लड़कियाँ नहीं कर रही थीं। ये बेपरवाही अचानक से हमारे अंदर आई थी और हम सब इसे लेकर बेहतर महसूस कर रहे थे। वो अलग-सी लड़कियाँ थीं और अब हम उनके जैसा महसूस कर रहे थे। हमने रेस्टोरेंट में बैठ कर ही पुरानी और नई तस्वीरों को देखा। पिछली ईद पर तो हम शनिबाजार में घूमे थे। इस बार हम एक नई जगह पर गए और हमारी सोच का दायरा बढ़ा। एक सहेली बोली, “यार इस बार मेरी ज़्यादा अच्छी तस्वीरें आई हैं।”

मेरी और सहेलियों की ईद इतनी मुबारक रहेगी सोचा न था। मैंने मन ही मन उन अलग सी लड़कियों को शुक्रिया कहा। 

अपनी धुन में 

साबिया  

 

मेरी गली में एक लड़की है, वह हमेशा चर्चे में बनी रहती है। उसका नाम माही है। हमारी गली की सभी लड़कियाँ सूट सलवार पहनती हैं, वहीं माही जींस-टॉप पहनती है। इस वजह से गली वाले उसे बिगड़ी हुई लड़की समझते हैं। वे अभी दसवीं क्लास में पढ़ती है और दिखने में बारहवीं  क्लास की लड़की जैसी लगती है। उसका रंग सांवला है, आँखें  गहरी हैं। वो जब भी काली बिंदी लगाती है तो और भी सुंदर लगने लगती है। उसे काली बिंदी लगाने का शौक भी है। वह जब भी काली बिंदी लगाती तो उसके घर से लेकर गली के लोग टोकते, लेकिन वो कहाँ किसी की सुनती हो! 

माही उठती तो पहले है, पर जब तक सात न बज जाए, स्कूल के लिए निकलती नहीं। रास्ते में अगर दोस्त मिल जाएँ तो बैग उसे पकड़ा आराम से चलती है। वो अपनी सहेलियों की चहेती है। उसकी कुल आठ सहेलियाँ हैं। वे सभी उसके शुरुआती कक्षा से ही दोस्त हैं। वह स्कूल जाते टाइम खूब मस्ती करती हुई जाती है। कभी किसी की चोटी खींच देती तो कभी अपनी सहेली के नए हेयर स्टाइल को बिगाड़ देती हैं। कभी कोई रूठ जाती तो कभी कोई मान जाती हैं। ऐसे करते-करते सभी सहेलियाँ स्कूल पहुँचने में लेट हो जाती हैं। लेट की सज़ा में लाइन में खड़ी हो जाती हैं। थोड़ी देर खड़ी रहने के बाद स्कूल के मैदान से छोटे-छोटे पत्थर उठातीं और क्लास में भाग जाती, और क्लास में बैठ लंच का इंतज़ार करती।  

फिर हमारे स्कूल के गार्डन में दो लोहे के गोल डंडे लगे हुए हैं। उस पर एक खड़ा होता तो दूसरा उस डंडे को पकड़े रहता। माही उसके कंधे पर हाथ रखकर झूलती। कभी टॉयलेट के बहाने पीरियड गोल करती और छुट्टी के टाइम पानी की बोतल भर कर अपनी दोस्तों के ऊपपर डाल उन्हें गीला कर डालती और कोई फालतू बोलता तो उसे अंट-संट जवाब दे चुप करा देती। एक दिन माही और उसकी सभी सहेलियाँ ग्राउंड में खड़ी बातें कर रही थी तभी एनसीसी के कुछ लड़कों ने उनको गंदे इशारे किए, माही और उसकी फ़्रेंड्स को गुस्सा आया और उन्हे गालियाँ दीं और एक लड़के को चाँटा मार फिर प्रिंसिपल के पास चली गई तो मैम ने उन लड़कों को खूब डाँटा। लेकिन वहीं माही के ग्रुप को भी डाँटा, तुम्हें लड़कों के टाइम पर ही सब काम करने होते हैं। माही ने बोला कि मैम आप देख लो मेरे हाथ में बुक है, हमें सर्दी लगी तो हम क्लास के बाहर खड़े हो गए, लेकिन किसी के सामने नहीं गए । इन्होंने हमें देखकर गंदे इशारे किए। फिर क्या था प्रिंसिपल मैम ने भी कुछ ज़्यादा बोला नहीं। 

ऐसी ही है माही! 

माही के ग्रुप में उसकी एक सहेली सुहाना का जन्मदिन आने वाला था पर उसके पापा को पसंद नहीं था कि वो दोस्तों को घर बुलाए। सुहाना नत्थू चौक में रहती है। इतवार को सुहाना का जन्मदिन था। वो अपना जन्मदिन मना नहीं पाई इसलिए सोमवार को पैसे लेकर स्कूल आई और अपने दोस्तों से कहने लगी कि हम आज छुट्टी में अपना जन्मदिन मनाएँगे। हर बार मैं तानिया के घर जन्मदिन मनाती थी। माही ने कहा, “तू मेरे घर मना ले।”

ग्रुप में प्लॉन किया गया कि माही के साथ एक लड़की उसके घर जाएगी और सफ़ाई करवाएगी। दो लड़कियाँ जे ब्लॉक जाएगी चिल्ली-पोटेटो लेने और दो साही डेयरी से चाऊमीन लेने जाएगी। ऑर्डर दो लड़कियाँ देकर आ जाएँगी। छुट्टी होने में सिर्फ़ पंद्रह मिनट बाक़ी थे। बातों ही बातों में छुट्टी हो गई समय का पता ही नहीं चला। माही घर आई। उसके घर में कोई नहीं था। उसकी अम्मी ड्यूटी के लिए नौ बजे निकल जाती हैं। उसकी बहन 11 बजे सेंटर जाती है। उसके पापा जामा मस्जिद में काम करते हैं और उसका भाई शोरूम में काम करने चला जाता है। उसकी छोटी बहनें 1 से 3 बजे तक ट्यूशन रहती हैं। 

माही के घर में ताला लग रहा था। उसने मशाले पीसनेवाली मशीन के जग से चाबी निकाली और ताला खोला। अपना और अपनी दोस्त का बैग रख कर मुँह-हाथ धोया। माही के घर में टाइलें लगी हैं और व्हाइट पुट्टी भी हो रखी है। उसका घर हॉल जैसा है। किचन बाहर की ओर है। माही ने अपनी ड्रेस कुर्सी पर रखी। इतने में दो लड़कियाँ आईं और कहने लगी कि हम केक का ऑर्डर दे आए हैं। अब मुझे पानी दे दे। माही ने पानी दे दिया, और उनका बैग टाँगा। उन दोनों ने अपना मुँह-हाथ धोया। 

अभी सभी स्कूल ड्रेस में ही थी तभी कोई माही के घर की बेल बजाने लगा। माही ने खिड़की से झाँका। उसकी एक दोस्त नीचे खड़ी थी। उसने कहा, “सुहाना से कह दे कि पेप्सी के पैसे दे दे।” एक लड़की ऊपर आई है और बोली, “चिल्लीपोटेटो और चाउमीन भी तो मैं ले आई। तू मुझे फटाफट पानी दे दे, जोरों से प्यास लगी है। थक गई मैं तो!” सुहाना खिड़की से सौ रुपये फेंकती है, उसे उसकी दोस्त पकड़ लेती है। वो थम्स-अप लेती आई और पलंग पर बैग रख कर माही से पानी माँगने लगी। पानी पीकर वह बोली, “सानिया और तानिया अभी तक नहीं आए?” सुहाना बोली, “ज़रूर घूम रही होंगी।” तभी बेल बजाते हुए सानिया और तानिया ऊपर चले आए। उन्होंने चाऊमीन और चिल्ली-पोटेटो, मोमोस को प्लेट में रखा। माही ने एलसीडी को फूल वॉल्यूम पर कर दिया, गाने बजने लगे। उसकी घर की पटिया पर बैठी गली की कुछ औरतें कहने लगी कि ये लड़कियाँ कितनी बेशर्म हैं। इतनी तेज़ गाने बजा रही हैं। 

तभी सुहाना ने कहा, “अब तो केक बन गया होगा। चल आइशा साथ चल!” वे दोनों साथ चल दी। नीचे पटिया पर बैठी आंटियाँ उन्हें घूर कर देखने लगीं। क्योंकि वे सभी स्कूल की ड्रेस में थी और घर नहीं पहुँची थी। उन दोनों ने सभी को नज़रअंदाज़ किया और चलने लगी। जल्दी से केक की दुकान पर पहुँची और कहने लगी, “जो दो लड़कियाँ केक का ऑर्डर देने आई थी सुहाना के नाम का, वो दे दो।” वो बोले, “ठीक है बस नाम लिख दूँ।” उन्होंने चॉकलेट ली और उस पर नाम लिख दिया और डब्बा बंद करके उन्हें पकड़ा दिया। 

फिर उन्होंने केक काटा और सभी डांस करने लगीं। गानों की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि आंटियाँ नीचे से चिल्ला-चिल्ला कर उन्हें डाँटने लगी, पर वे तो गाने के बोल गाने लगीं - बलम मेरा गोरा चिट्टा। आज की पार्टी मेरी तरफ़ से...  जैसे गानों पर ख़ूब तेज़ आवाज़ में गा-गाकर मज़े कर रही थीं लेकिन सानिया का ध्यान बार-बार घड़ी पर था क्योंकि वो कुरानख़ानी के बहाने आई थी और दुपट्टा साथ लेती आई थी। सभी समोसा हाथ में लेकर और कोल्ड-ड्रिंक के गिलास को सिर पर रख कर डांस कर रही थीं। डांस के बहाने एक-दूसरे को छेड़ रहे थे। कोई बाल खींच रहा था। सबसे ज़्यादा माही रमशा और सिमरन को मार रहे थे। ऐसे ही सुहाना का जन्मदिन मन गया। फिर उन्होंने सारी प्लेटें बाहर रखी और झाड़ू लगाई। जहाँ-जहाँ केक लगा हुआ था वहाँ पोंछा और मुँह-हाथ धोकर कपड़े साफ़ किए अपने-अपने बैग ले घर जाने लगीं। 

नीचे बैठी आंटी ने कहा, “तुमलोग इतनी तेज़-तेज़ आवाज़ में गाने सुन रही थीं।” सानिया को गुस्सा आ गया उसने कहा कि अपने बच्चों को ज्ञान दो, हमें मत दो। बड़ी आईं हमें ज्ञान देने वालीं। वो आंटी चुप हो कर रह गईं। कोई ही लड़की होती है जो अपनी ज़िंदगी में मज़े लेती और दूसरों को जवाब देकर आगे बढ़ती है। माही उन्हीं में एक थी। 

सुहाना और उसकी दोस्तों ने बताया कि सुहाना का जन्मदिन कैसे मनाया गया। उनकी बातें सुनकर और बच्चे कहने लगे कि हमें भी ऐसे ही जन्मदिन मनाना है। उनकी मैम हमेशा माही के ग्रुप को ग़लत समझती हैं। माही के ग्रुप ने प्लान  किया कि कल घूमने चलें। कुछ मना कर रही थी क्योंकि उनकी अम्मी नहीं भेजेगी। माही ने कहा, सानिया, सुहाना, शिफ़ा, तानिया, कुरानख़ानी के बहाने आ जाना, मैं बुलाने आऊँगी। आयशा, सिमरन और मंतशा जन्मदिन के बहाने आ जाना, कह देना मेरा जन्मदिन है, ठीक है। 

अगले दिन पहले उसकी दो सहेलियाँ उसके घर आईं। माही ने खिड़की से नीचे झाँक कर देखा, मंतशा और सिमरन थे और उन्हीं के पीछे आयशा भी थी। माही ने कहा कि अच्छा तू चल ऊपर, शिफ़ा को मैं बुलाने जा रही हूँ। तानिया और सुहाना तुम दोनों दुपट्टा ओढ़ो और साथ चलो। 

माही की अम्मी कुछ ही दिन पहले घर में एलसीडी टीवी लाई। सभी खुश थे लेकिन माही सबसे ज़्यादा खुश थी । माही स्कूल से आई और घर का काम करने लगी। उसने टीवी में पंजाबी गाने चलाए और काम करने लगी। उसने एक गाने में देखा कि हीरोइन के होंठ के नीचे तिल है, जो माही को बहुत अच्छा लगा। वो कई दिनों तक तो काजल से ही अपने होंठों के नीचे काला तिल बनाकर घूमती थी। वो तिल उसपर सूट कर रहा था। लेकिन वो बार-बार मिट जाता था । फिर वो अपनी एक सहेली के साथ शनिबाजार गई। आजकल हमारे  शनिबाजार में सेल लगते हैं। सभी लोग कपड़े खरीदते हैं। माही के चेहरे को देख सहेली ने कहा, “अरे आज तेरा तिल कहाँ ग़ायब हो गया?”

माही ने बोला, “यार मुझे तिल बड़ा अच्छा लगता है। क्या करूँ?”

वे दोनों साथ में शनिबाजार की गॉसिया मस्जिद के पास से गुज़र रहे थे। वहाँ कोने में टेटू गोदने वाला बैठा था, वहाँ मेरी नज़र पड़ी। वहाँ एक लड़की अपने हाथ पर टेटू गोदवा रही थी। तभी माही के दिमाग़ में एक बात आई, क्यों ने मैं अपने होंठ के नीचे ऐसा ही तिल बनवा लूँ। उसने फिर टेटूवाले से पूछा, “अरे भईया क्या आप तिल बना सकते हो?” उसने बड़ी हैरानी से देखा?

माही ने बोला, “अरे मुझे होंठ के नीचे एक तिल गुदवाना है, बना दोगे या नहीं?” 

उसने कहा, “क्यों नहीं?”

माही ने उससे पैसे का मोलभाव किया और अपने होंठ पर तिल गुदवा लिया। लेकिन उसको मिर्ची-मिर्ची सा लग रहा था। उसने जब तिल देखा तो उसका साइज़ बिल्कुल राई के दाने जैसा था। जो उस पर सूट कर रहा था, साथ ही किसी को देखने से पता भी नहीं चल रहा था कि ये नक़ली तिल है। माही ने कई बार आड़े-टेढ़े मुँह बना-बनाकर शीशा देखा। उसकी सहेली ने बोला, “यार तेरे अम्मी अब्बू गुस्सा तो नहीं होंगे न?”

माही ने बोला, “अबे नहीं।”

माही जब घर पहुँची तो उसके घरवालों ने उसे खूब डाँटा, तिल के लिए नहीं लेट आने के लिए। माही का तिल किसी को दिखाई नहीं दे रहा था आज भी सभी को यही लगता है कि तिल अपने आप उग आया है। माही के घर में इतनी रोकटोक होने के बावजूद भी वो मन की ही करती है।

एक बार माही के घर में उसका बड़ा भाई काम से जल्दी लौट आया था और माही का ट्यूशन का टाइम हो रहा। वो ट्यूशन के लिए जाने लगी तो उसका भाई उस पर गुस्सा हो गया । उसने कहा दुपट्टा डालकर जा। माही ने ढीली शॉर्ट कुर्ती पहनी हुई थी आज उसने दुपट्टा नहीं ओढ़ा था। बस उसी के लिए माही को लगातार डाँट पड़ रही थी। माही ने भी चिल्लाकर बोला, “मैं नहीं डाल रही दुपट्टा।”

उसके भाई  ने बोला, “तो फिर ट्यूशन नहीं जाएगी।”

माही ने बोला, “क्यूँ क्या खराबी है मेरा टॉप ढीला भी है और मुझे नहीं लगता कि दुपट्टा ओढ़ना चाहिए।” पर उसका भाई उसके पीछे पड़ गया फिर उसने दुपट्टा ओढ़ लिया। क्योंकि माही को अपनी क्लास लेना ज़्यादा जरूरी लगा । वो बड़बड़ा कर ज़ीने से नीचे उतर गई। उसको ऐसा करते देख उसका भाई बहुत खुश हुआ। भाई अभी सोच ही रहा था कि उसने उसको मजबूर कर दिया। उसकी नज़र खिड़की से जैसे ही बाहर गई तो देखा माही ने दुपट्टा गले से हटाकर अपने बैग में रख लिया। उसका भाई उसकी इस हरकत को देखता ही रह गया।