ज़रूरतें

दिनचर्या

सुबह-सुबह अपने घर का सारा काम ख़त्म करके पहले  सामान लेने गाँधी नगर मार्केट जाती। संडे और बुधवार के अलावा बाकी बाज़ार शाम को ही लगते हैं। इस कारण वह सामान रोज़ सुबह के समय ही लाती है। संडे और बुध को बाज़ार सुबह 10 बजे तक पूरी तरह से लग जाता है और शाम होते-होते हट भी जाता है। बाक़ी दिन बाजार शाम को लगते और रात के 10 बजे के बाद हटने शुरू होते। बाद में प्रेमा एक ही दिन ज़्यादा सामान ले आती ताकि उसका रोज़ का किराया भी बचे, और ज़्यादा सामान होने पर ग्राहकों को अपनी पसंद का सामान लेने में आसानी हो। अपना काम कर वह आत्मनिर्भर औरत बन चुकी थी। अब वो अपना ख़र्चा भी खुद ही उठा लेती है। भले ही प्रेमा और उसकी सहेलियों को ज़्यादा मुनाफ़ा न हो, उससे उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं है। वो यह खुश रहती है।  एक औरत होते हुए वह अपना खुद का काम कर रही है। इस काम को करके वो निडर भी हो गई है। उसके अंदर इतनी हिम्मत हो गई है कि अब उसे (खुद बाजार लगाती हैं) कई आदमियों के बीच औरत होते हुए भी बाजार लगाने में संकोच नहीं होता है।

जगह की खोज

शुरू में उसे कोई जगह नहीं मिली। उसने बाजार में कईयों से पूछा कि मैं बाज़ार कहाँ लगा सकती हूँ। सबने यही कहा कि कोई जगह ख़ाली नहीं है। सबने मना कर दिया। हाँ! एक खिलौने बेचने वाले ने ज़रूर कहा कि मैं आपको अपनी जगह दे सकता हूँ, अब मैं हमेशा के लिए गाँव जा रहा हूँ। आप मेरी जगह ले लेना और अपना सामान बेच लिया करना। खिलौने वाले की बात सुन कर प्रेमा बहुत खुश हुई। आख़िर उसे किसी ने बाज़ार में जगह तो दी। उसने खिलौने वाले से कहा भी कि भईया आप गाँव क्यों जा रहे हो। उसने कहा, 'मैडम कुछ फैमिली प्राब्लम है।' 

प्रेमा ने कहा, 'अच्छा भाई! आप बाद में तो मुझसे फिर ये जगह तो नहीं माँगोगे।' उसने कहा, 'नहीं माँगूँगा, और जहाँ भी मैं बाज़ारों में दूकान लगाता था, उस जगह पर भी आप ही लगा लिया करना। मैं आपको सारी जगह बता दूँगा। मैं किस-किस जगह पर और किस तरफ़ दूकान लगाता हूँ।'

प्रेमा को यह सुनकर बेहद खुशी हुई कि आख़िर उसे कोई जगह तो मिली। लेकिन उसे इस बात की तकलीफ़ भी हुई कि खिलौने वाले को अपनी दूकान बंद करनी पड़ रही है। प्रेमा उस खिलौने वाले का यह अहसान जीवन भर नहीं भूलेगी। बस उसी दिन से प्रेमा ने खिलौने वाले की जगह बाज़ार में दूकान लगाना शुरू कर दिया।

संडे बाज़ार 

प्रेमा ने गीता ओर सविता के साथ मिलकर बाज़ार में अपनी खुद की दूकान लगाने के बारे में सोचा था। क्यूँकि वे लोग भी चाहती थीं कि वो अपना खुद का काम करें, और अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दे सकें। दूकान लगाने की शुरुआत प्रेमा ने की।  गीता और सविता ने फिर से प्रेमा से बात कि तो पता चला कि वह पर्स गाँधी नगर से लाती है। और, वो वहाँ पर पर्स लाने के लिए अकेले नहीं जाती। फिर दोनों सहेलियों ने उसके साथ जाना शुरू कर दिया। गीता खिलौने लाने लगी और सविता ने छोटे बच्चों के कपड़े। वहाँ से तीनों ई-रिक्शे पर सामान लेकर लौटतीं। 

प्रेमा के साथ फिर दोनों सहेलियाँ भी बाज़ार में अपनी दूकान लगाने लगीं। गीता खिलौने बेचने लगीं, और सविता छोटे बच्चों के कपड़े। दोनों ही प्रेमा की बहुत पुरानी दोस्त है। जब बाज़ार धीमा हो चलता है तब ये तीनों कुछ ना कुछ बतियाने लगती हैं। कभी अपने घर के बारे में, तो कभी टीवी पर चलती न्यूज़ के बारे में। जैसे आज इनके बीच चर्चा का विषय बना हुआ है–साक्षी मर्डर केस। जबसे उन्होंने इस केस के बारे में सुना और टीवी पर देखा है तबसे वो खुद भी डर गई हैं, क्योंकि उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि उनके घर में भी बेटियाँ है। ऐसे ही वो कई विषयों पर चर्चा करती रहती हैं।

जैस्मिन बानो, त्रिलोकपुरी

उन्हें कहानी और कविता लिखना और पढ़ना अच्छा लगता है।

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