बहनापा - बातें बीमारियों की
समय: दोपहर ढाई बजे
पात्र – परिचय
कोमल (घर का काम खत्म करके आई)
उर्मिला (बच्चों को स्कूल से लेकर आई)
सरिता (पति को ड्यूटी पर भेज कर आई) और
पायल (मंगल बाज़ार से आई)
(पाँच नंबर राधाकृष्ण मंदिर, खिचड़ीपुर में ये सभी रहती हैं। वहीं पार्क में सामनेवाले झूले के बगल में नीम के
पेड़ के नीचे बेंच पर बैठी हुई हैं कोमल और उर्मिला। सामनेवाली बेंच पर बैठी हुई हैं, सरिता और पायल। इन
सब लोगों के हाथ में एक-एक डोलची है जिसको देख लगता है कि ये सब दूध लेने मदर डेयरी जा रही हों।
कोमल जिसने लाल रंग की चमकदार मोतियों वाली साड़ी पहनी हुई है और लाल रंग की बिंदी लगा रखी है,
उसका चेहरा खिल रहा है। उर्मिला जिसने पीले रंग का सूट पहन रखा है, उसमें लाल रंग के फूल लगे हैं। सरिता
और पायल ने एक जैसे रंग, नीले रंग की ड्रेस पहनी हुई हैं। लगता है सभी ने यहाँ आने की विशेष तैयारी कर
रखी है)
पायल : आजकल कितनी बीमारियाँ फैल रही हैं, डेंगू, मलेरिया, टाइफ़ाइड।
इतनी बारिश हो रही है कि पूछो मत! हर जगह पानी भर जाता है। पार्क के
गड्ढे में भी पानी भर जाता है। कहीं ग़लती से गड्ढे के अंदर पैर पड़ा तो कहीं
और मिलेंगे। रमेश के बेटे को ही ले लो, परसों की ही बात होगी बारिश होने
होने के बावजूद वह पार्क में अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। खेलते-खेलते
वह इतना खो गया कि उसका पैर ग़लती से गड्ढे में गया और वह सिर के बल
गिर गया। उसके सिर में चोट लग गई। यह तो अच्छी बात है कि उसके दोस्तों
ने जाकर उसके घर पर बता दिया था। फिर उसके घरवालों ने उसको अस्पताल
ले जाकर पट्टी करवाई। यह बात मुझे रमेश की पत्नी रीतू ने बताई।
उर्मिला : हाँ, हाँ! अब करे भी तो क्या करें! ये बारिश और बारिश से फैलने
वाली बीमारियाँ! आजकल बारिश इतनी हो रही है कि गड्ढों में पानी भर
ही जाता है, पर उसके साथ-साथ नालियों का पानी भी नालियों से बाहर
आ जाता। बड़ी नालियों का गंदा पानी चलते हुए पैरों में लगता है जिससे
पैरों में दाने हो जाते हैं। मेरे भी पैरों में दाने हो गए हैं जो बहुत जलन
करते हैं। सही से चला भी नहीं जाता।
सरिता : हाँ, उर्मिला तुम सही बोल रही हो! दाने तो मेरे भी हो गए है।
नाली के पानी में तो मच्छर भी पैदा हो जाते हैं। बारिश होने की वजह से
ही मच्छर पैदा होते हैं। मैंने एक बात नोटिस की है बताऊँ?
पायल : हाँ! हाँ! बिल्कुल बताओ!
सरिता : मैंने नोटिस किया है कि जब भी डेंगू, मलेरिया ज़्यादा फैलता है;
उसी बीच नारियल बाज़ार में आने शुरू हो जाते हैं और उसके दाम भी बढ़
जाते हैं।
पायल : यह बात तो बिल्कुल सही है। बारिश की वजह से डेंगू, मलेरिया
आजकल ज़्यादा फैल रहा है। वहीं बाज़ार में नारियल आना भी शुरू हो
गए हैं जिसको भी यह बीमारी होती है, डॉक्टर यही सलाह देता है कि
नारियल पानी ज़रूर पिलाना। मेरे बेटे को भी मलेरिया हो गया है।
डॉक्टर के पास ले गई। ख़ून टेस्ट किया तो पता चला कि मलेरिया है।
उसने भी यही सलाह दी थी और कहा कि नारियल पानी पीने से कमी पूरी
होती है और कमज़ोरी की वजह से चक्कर नहीं आते हैं। ‘ठीक है...’ बोलकर
मैं दूध लेने जाती हूँ। वहाँ से नारियल लेते हुए घर जाती हूँ।
सुशीला : हाँ, मैंने भी देखा है। पार्क में थोड़ा घूमने और थोड़ी बातचीत
करने के बाद जब मदर डेयरी से दूध लेने के बाद जब हम घर की तरफ़
जाते तो तुम एक नारियल ज़रूर लेती थीं। अब मुझे पता चला कि तुम
रोज़-रोज़ नारियल क्यों लेकर जाती थीं।
सरिता : पायल तुम्हारा तो समझ में आता है तुम्हारे बच्चे को मलेरिया है,
पर हमारे बच्चों को तो कुछ भी नहीं है; तब भी नहीं सुनते चाहे जितना
खेलने को कह दो। अगर ये बोल दो कि मदर डेयरी से दूध ले आ तो कभी
बोलेंगे मेरे सिर में दर्द है, कभी पेट दर्द करता है और कभी कुछ और...
खेलने में कुछ दर्द नहीं करता। बस इनको खेलने को, टीवी देखने को कह
दो... काम के लिए मत कहो। बाक़ी सब कर लेंगे।
पायल : हाँ, सही कह रही हो बहन। आजकल के बच्चे तो एक काम नहीं
सुनते बताओ बहन हम क्या करें? खेलेंगे-कूदेंगे हाथ-पैर में चोट लग गई
तो और किसी को नहीं हमको ही भुगतना है। अस्पताल लेकर हम घूमें।
हम तो इनसे ही परेशान हो चुके हैं। मेरा बेटा तो मेरी एक बात नहीं
मानता। परसों बारिश हो रही होगी।
उर्मिला : हाँ, बारिश तो हो रही थी।
पायल : वही तो मैंने अपने बेटे पीयूष को मना किया था कि बारिश में
नहाने मत जइयो... पर मेरी बात वो सुनता कहाँ हैं। मेरी बात सुनी नहीं
और नहाने लगा। कल उसकी आँख पूरी लाल हो गई थी।
कोमल : बहन, तुझे नहीं पता ये एक नई बीमारी है। इस बीमारी का नाम
‘आई फ्लू’ है। ये आँख में गंदा पानी पड़ने से, बारिश का पानी आँख में
पड़ने से या जिसे ये बीमारी होती है उसकी आँख में देखने से भी होता है।
आजकल ये बीमारी बहुत लोगों को हो रही है। इसका इलाज एक आँख की
छोटी-सी ड्रॉप वाली बोतल होती है और एक आँख में डालने वाली कैप्सूल।
सरिता : यह ड्रॉप वाली बोतल और कैप्सूल कहाँ मिलेगी?
कोमल : यह तो आगे वाले डॉक्टर के पास या दवाईवाली क्लीनिक में भी
मिल जाएगी।
पायल : अरे! अरे! शाम वाली शिफ़्ट के बच्चों की छुट्टी होने लगी है, मतलब
कि छह बज गए होंगे; अब मुझे जाना चाहिए क्योंकि मदर डेयरी से दूध
लेने के बाद मुझे अपने बेटे के लिए नारियल भी लेना है। और मैं उसे
उसकी बड़ी दीदी के पास छोड़कर आई हूँ।
उर्मिला : ठीक है बहन, तुम जाओ हम थोड़ी देर बाद आ जाएँगे।
पायल : चलो, फिर मैं जा रही हूँ; घर पर मिलेंगे।
उर्मिला : बेचारे हम! हमारे घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए, उनके
पीछे परेशान हों हम। अगर हम ख़ुद बीमार हो जाएँ, तब भी परेशान हों
हम। हमको घर पर कितना सारा काम रहता है, जैसे : झाड़ू लगाना, कपड़े
धोना आदि। काम गिनते-गिनते थक जाएँगे और घर की सारी ज़िम्मेदारी
तो हमारे पर ही है।
सरिता : सही बोल रही हो तुम! हमारे साथ कोई घर पर हाथ बँटाने
वाला भी तो नहीं है। वो तो मेरी बड़ी बेटी है जो घर पर थोड़ा हाथ बँटा
देती है।
उर्मिला : तुम्हारे पास बड़ी बेटी तो है घर पर हाथ बँटाने के लिए, पर मेरे
पास तो बेटा है जो दिन भर खेलता है। अगर उसे बोल दो पढ़ाई कर ले तो
बोलेगा नींद आ रही है, मैं थक गया हूँ। बस इनको खेलने को कह दो।
सरिता : अब क्या करें इन बच्चों का! हम कुछ नहीं कर सकते। बड़े होते-
होते सीख ही जाएँगे।
सरिता : वह देखो पार्क में खेलने के लिए बच्चे आना शुरू हो गए हैं। हरदम
बच्चों का खेलने आना तीन बजे शुरू हो जाता है। चलो, चलो अभी मदर
डेयरी से दूध लेने के बाद हमें घर पर इतना सारा काम भी तो करना है।
अब हमें चलना चाहिए।
उर्मिला : हाँ, चलो चले। मेरी बेटी अपनी बुआ के साथ है और मुझे तो
अभी सुबह के बर्तन भी धोने हैं।
सरिता : कल हम थोड़ा जल्दी आ जाएँगे। अपना काम थोड़ा जल्दी ख़त्म
कर लेना।
उर्मिला : चलो, अब हम चलें।
कोमल : हाँ! बिल्कुल चलो।
सानवी