अड्डे लड़कियों के
शिफ़ा की उम्र कुछ 14 बरस होगी, वो देखने में लंबी है। हम दोनों बचपन के
दोस्त हैं। अगर मैं कभी परेशान रहती हूँ तो शिफ़ा के पास चली जाती हूँ और
कभी वो परेशान हो तो मुझसे मिलने आ जाती है।
दोपहर के कुछ दो बजे थे, शिफ़ा ने हरे रंग का सूट और सफ़ेद सलवार पहनी थी।
उसकी चोटी बंधी देख ये लग रहा था जैसे वो अभी ही स्कूल से लौटी हो। शिफ़ा
खाना खाकर और थक-हार कर आपने बेड पर लेट गई। उसकी चादर सिकुड़ी हुई
थी। एकदम से उसकी अम्मी आ गईं, वो हड़बड़ाकर उठी और अपनी अम्मी से 30
रुपए मांगने लगी। इतने में मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया और आवाज दी
“शिफ़ा, कॉपी लेने चल रही है क्या?”
हम दोनों तो बहुत दिनों से सोच रहे थे कि क्या बोलकर निकले। कल हमने सोचा
था कि अब तो सामान लेने के बहाने जाएँगे। बहुत दिनों से हमारा गोल-गप्पे खाने
का मन था, लेकिन शिफ़ा के अम्मी-अब्बू उसे बाहर नहीं जाने देते हैं। गगनवाले
रोड के सामने स्पेशल गोलगप्पे की रेहड़ी वाला खड़ा होता है। वो इतने अच्छे
गोलगप्पे बनाता है कि मुँह में पानी आ जाए।
शिफा और मैं, हम दोनों कॉपी खरीदने के बहाने गोलगप्पे खाने चल दिए। जब
हम गोलगप्पे खाने जा रहे थे, तब शिफ़ा कहने लगी कि यार कहीं मेरे पापा न
देख लें? मैंने कहा, “नहीं देखेंगे, तू चल!” वो थोड़ी-सी घबराई हुई थी।
सब हमें घूर-घूरकर देख रहे थे। कुछ लोग तो कह रहे थे कि देख, ये तो अपनी
गली वाली लड़कियाँ हैं। हम दोनों उनकी बातों को अनसुना करते हुए बस चलते
जा रहे थे। हम दोनों गोलगप्पे की रेहड़ी के पास पहुँच गए। हमने गोलगप्पे वाले
भईया से पूछा की भईया गोलगप्पे कितने के दिए? भईया ने आपने कंधे पर टंगे
गमछे से माथे का पसीना पोंछते हुए कहा, ‘10 रुपए के तीन गोलगप्पे।’
हमने भईया से सूजी वाले गोलगप्पे खिलाने को कहा।
मैंने देखा कि उन्होंने लाल रंग की टी-शर्ट और नीले रंग का लोअर पहना हुआ था।
उसकी उम्र तक़रीबन 30 या 35 साल की होगी। उन्होंने हमारे हाथ में दोने दिए।
मैं उनके गोलगप्पे बनते हुए देख रही थी। पहले उसने एक पानीपूरी निकाली,
उसमें आलू और छोले डाले फिर उसमें मसाला और जलजीरे का पानी डाला।
उन्होंने हमारे दोने में इस तरह से गोलगप्पे डाले जैसे हम कोई भिखारी हों।
हमने गोलगप्पे मुँह में डाले।
मैंने शिफा से कहा कि आज भईया के गोलगप्पे अच्छे लग रहे हैं। शिफ़ा
का तो मुँह लटका हुआ और गुस्से से भरा था। मैंने शिफ़ा से पूछा कि तेरा
मुँह क्यों लटका है तो वो कहने लगी की एक तो डर लग रहा है कहीं पापा
न देख लें, दूसरे वो कहने लगेंगे कि टाइम वेस्ट कर रही हूँ, मैं। मैंने कहा
कि भइया इसको मीठीवाली चटनी दो जरा, इतनी चिंता करती है ये लड़की।
गोलगप्पे वाले भइया तो मेरी शक्ल देख रहे थे। तभी वहाँ एक लड़की आई
और कहने लगी कि भइया मोटे या बड़े गोलगप्पे दे देना। शिफा और मैं,
हम दोनों कोने में खड़े होकर गोलगप्पे खा रहे थे।
मेरा मन कर रहा था कि हम गोलगप्पे खाते रहें, खाते रहें। तभी शिफा कहने
लगी कि चल जलजीरे का पानी पीते हैं। हमने भईया को दोना दिया। उन्होंने
उसमें जलजीरे का पानी दे दिया। हमने जायका लेकर गोलगप्पे खाए। मैंने
देखा कि उसके ज़्यादातर गोलगप्पे बिक जाते हैं। उसकी रेहड़ी पर लड़कियाँ
बहुत होती हैं। वो गोलगप्पे खाते-खाते बहुत बातें करतीं और ज़ायका लेके
गोलगप्पे चट कर जातीं।
वापस जाते हुए शिफ़ा कि चप्पल टूट गई, ये देख मैं हँसने लगी। उसने मेरे एक
चाँटा मारा और कहने लगी कि तू क्यों हँस रही है? अगर तेरी चप्पल टूट जाती
तो क्या करती? मैंने अपनी हँसी रोक ली। इतने में पीछे से उसके पापा आ गए।
मैंने शिफा से कहा कि तेरे पापा आ गए हैं, जल्दी भाग! उसकी तो चप्पल ही टूटी
हुई है तो वो लंगड़ाते हुए चल रही थी। मैंने उससे कहा कि तू मेरी चप्पल पहन ले
और जल्दी भाग! नहीं तो तेरे पापा आ जाएँगे! खुद तो पिटेगी और मुझे भी दो-
चार लग जाएँगे!
वो मेरी चप्पल पहन कर भाग गई। मैं लंगड़ाते हुए चल रही थी। उसने मुझसे
कहा आज तो मैं गई! मैंने उसकी बात अनसुनी की। हम जल्दी से घर आ
गए। जब हम घर आ रहे थे तो रास्ते में सब हमें ही देख रहे थे। घर आते हुए
आवाज़ आ रही थी—आलू बीस रुपये किलो!
मैं भी जल्दी से शिफ़ा के घर में घुस गई। उसकी अम्मी पूछने लगी कि कहाँ से
आई है? उसने कहा कि कहीं नहीं गई थी। उसकी अम्मी ने पूछा, “कॉपी कहाँ
है?” शिफ़ा ने कहा कि आज तो दुकान बंद थी तो मैं तमन्ना के घर चली गई थी।
इतने में उसकी बहन ने आवाज़ मारी। वो अंदर चली गई और घर का काम करने
लगी। फिर उसने मुझे आवाज़ लगाई, तमन्ना! तमन्ना! आ जा, खेलते हैं।
हम दोनों खेलने लगे। थोड़ी देर में आस-पास की और लड़कियाँ भी आ गईं। हम सब
खेलने लगे। नींद आने लगी। हम घर आ गए। घर आकर दोनों आराम से लेट गए
और सो गए।
इतनी ही हम लड़कियों की अड्डेबाज़ी है और इतनी ही कामना, लेकिन इसके लिए
हमें कितना जूझना पड़ता है।
-तमन्ना मलिक