ठान लिया तो ठान लिया/ दीपांशी

दिव्यावती आलू-प्याज की रेहड़ी लगाती है। सुबह उनका लड़का और दोपहर के बाद वो काम करती है, क्योंकि  उन्हें घर का काम भी करना होता है। आलू-प्याज़ की छँटाई भी करनी होती है। ये रेहड़ी पाँच नंबर जलेबी चौक पर लगाती हैं। रेहड़ी के बगल में मशहूर हलवाई अमितचंद की दुकान है जहाँ मिठाई बनने की खुशबू आती रहती है, लेकिन चाउमीन, समोसे से उठने वाली तेल की महक सर पर चढ़ती रहती है। चौक होने के कारण इस जगह चारों तरफ सड़कें हैं, इसलिए यहाँ हमेशा चहल-पहल बनी रहती है।  दिव्यावती ने बताया कि पहले मैं घर पर ही रहकर घर का काम करती थी। जब घर का किराया देना मुश्किल होने लगा तब मैंने सोचा कि ख़ाली ही बैठी रहती हूँ, क्यों न मैं आलू-प्याज बेचूँ। इससे घर में कुछ पैसे आएँगे और मेरा ख़ाली का उपयोग भी होगा। उनके पास पहले से एक ठेला था, सो उसका इस्तेमाल करने का उन्होंने मन बनाया।

दिव्यावती अपने पति के साथ रिक्शा से जाकर ग़ाज़ीपुर से सब्ज़ी लाती हैं। उन्होंने बताया कि कभी-कभी घाटा भी बहुत हो जाता है। कभी आलू हरे निकल जाते हैं। कई बार प्याज भी सड़ा निकलता है। एक-दो किलो आलू-प्याज ख़राब निकल ही जाते हैं। इससे हमारा पचास-सौ रुपये का घाटा हो ही जाता है। कमाई भी हर दिन अलग-अलग होती है।  

दिव्यावती ने बताया कि मुझे गर्मी में बहुत पसीना आता है। अमितचंद जब चिली-पोटैटो बनाता है तो आग की लहक हमारे पास आती है जिससे हमें बहुत गर्मी लगती है। सर्दी में तो बहुत ज़्यादा ठंड रहती है, उन दिनों शॉल ओढ़ते हैं। बरसात में पहले तो मैं सामान को बचाती हूँ। मैं भीग जाऊँ तो कोई बात नहीं अगर आलू-प्याज भीग गया तो वह सड़ जाएगा। 

दिव्यावती मौसम से ज़्यादा अपने बेटे की बीमारी से परेशान है। उनके बेटे को एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज ही नहीं है। उसको हर हफ़्ते दाने निकल आते हैं जिससे वह बहुत ही ज़्यादा परेशान रहने लगी हैं। वे अपने बेटे को लेकर हर हफ़्ते हॉस्पिटल जाती हैं और सूई लगवाती हैं। डॉक्टर ने कहा है कि अगर तुम अपने बेटे को सूई नहीं लगवाओगी तो तुम्हारा बेटे को नुक़सान हो सकता है।

दिव्यावती के परिवार में छह लोग हैं। वह हर हाल में अपने बेटे को अस्पताल लेकर जाती है। वो कहती है कि अगर मैं हॉस्पिटल में होती हूँ तो मेरा दूसरा बेटा रेहडी पर बैठता है। कभी-कभी उनके पति भी दुकान पर बैठ जाते हैं। जब भी उनके छोटे बेटे को देखा तो उसके पैर में गर्म पट्टी बँधी ही देखी है। इस कारण वह घर से बाहर नहीं निकलता। स्कूल तक भी नहीं जा पाता। दिव्यावती घर और रेहड़ी के बीच दौड़ती रहती है।

Previous
Previous

अब तो यह मन का काम है/ प्रियांशी

Next
Next

मेहनत की रौशनी/ रिया