अलग सी लड़कियाँ / मंतशा

लंच ब्रेक होते ही हम इन दिनों के अपने पसंदीदा काम में जुट गए। ज़्यादातर लड़कियों के रोजे चल रहे थे तो हमें लंच करना नहीं था। अब लंच ब्रेक में एक ही काम था कि हम सब बैठ कर मीठी ईद पर घूमने की जगहों की लिस्ट बनाते थे। इसके साथ ही सबसे जरूरी काम पैसों का हिसाब लगाना भी था। हम सारी सहेलियों को मीठी ईद का बेसब्री से इंतज़ार  था। कई दिनों से हम ईद पर अलग और बढ़िया-सी जगह पर घूमना चाहते थे। आखिरकार ईद का ही तो ऐसा दिन होता है जब हमें सहेलियों के साथ बाहर घूमने की छूट होती है। हमारे घरवाले हम पर ज़्यादा रोक-टोक नहीं लगाते हैं।

चाँद रात आ ही गई। इधर हमने चाँद का दीदार किया और उधर सारे मोहल्ले में ईद मुबारक की गूंज हो गई। पटाखे फूटने लगे और सुबह की तैयारियाँ होने लगी। चाँद को देखते ही मैंने सोचा कि अगली सुबह कितनी अच्छी होगी। हमारी मनपसंद जगह घूमने का आजाद दिन होगा। मैंने रात को ही कुरान शरीफ के कपड़े में रखे अपने पैसे निकाल कर गिने। पूरे 400 रुपये थे। कभी-कभार रिश्तेदार जो सौ-पचास रुपये पकड़ा जाते थे, ये वही जमा किए हुए थे। मैंने पैसे अपने स्कूल बैग की अंदर वाली पॉकेट में रखे ताकि कोई इसे देख कर ख़र्च न कर दे। अम्मी इसे देख कर मेरी ईदी का बजट ही कम न कर दें।

सुबह उठते ही मैंने अपने हाथों से सिले जॉर्जेट के सूट को इस्त्री किया। सभी को सलाम किया। रसोई में बाजी की मदद करने के बाद मैंने बालों में शैंपू किया। गीले बालों को तौलिए में लपेट मैं अपना मेकअप करने लगी। अम्मी बार-बार मेरे चेहरे की ओर देख रही थीं। शायद उन्हें मेरे लिपिस्टिक का रंग ज़्यादा ही गहरा लग रहा था। पर, आज के दिन अम्मी ज़्यादा अगर-मगर नहीं करती हैं। कुछ नापसंद लगने पर भी चुप रह जाती हैं।

कुछ देर बाद मेरी सहेलियाँ  मेरे घर आईं और अम्मी को ईद मुबारक कहा। अम्मी ने शीशे की कटोरियों में जैसे ही सेवइयाँ  निकालीं हम सबने एक साथ कहा कि हमें नहीं खाना। मेरी एक सहेली ने कहा, “आंटी घर का खाना तो रोज़ खाते हैं। आज तो बाहर का कुछ खाने के लिए पेट खाली होना चाहिए।” अम्मी उसकी बात सुन कर हँसने लगी। हमारी टोली घर से निकल पड़ी थी। अम्मी ने दरवाज़े पर आकर ताकीद की, “समय से लौट आना। फ़ोन न करना पड़े। सुन रही है न मंतशा?” मैं और मेरी सारी सहेलियाँ अम्मी को बाय कहते हुए चुपचाप गली से निकल गए।

ईद पर शनिबाजार में भी मेला लगता है। लेकिन यहाँ बड़ी उम्र के लड़के-लड़कियाँ नहीं घूमते हैं सिर्फ़ छोटे बच्चे ही घूमते हैं। हम सभी सहेलियों ने तय किया हुआ था कि हम सभी दिलशाद गार्डन घूमने जाएँगे। वहाँ बहुत सारी खाने-पीने की जगहें हैं। रास्ते में मुझे मामा की लड़की महक मिल गई। मेरे साथ मेरी दो दोस्त और थी। उन्होंने मुझे देखा और कहने लगी कि हमारे साथ घूमने चलोगी? मैंने गर्दन हिलाकर मना कर दिया क्योंकि मुझे अपनी दोस्तों के साथ घूमने में ज़्यादा मज़ा आता है। मैंने कहा, “हमारा तो पहले से ही दिलशाद गार्डन में घूमने का प्लान बना हुआ है।”  

महक ने मुझसे कहा, “हम तुझे ऐसी जगह पर ले जाएँगे जहाँ तू आज तक नहीं गई होगी।” वो हमसे जिद करने लगी। अब हम सबके मन में उस जगह को देखने की इच्छा हुई। मैं अपने मन में सोचने लगी कि ऐसी कौन-सी जगह है जहाँ मैं नहीं गई। मैं थोड़ी डर भी गई। मैंने हड़बड़ाहट में कहा, “बाजी तुम हम सबको कहीं दूर तो लेकर नहीं जा रही? अगर ऐसा है तो पहले बता देना क्योंकि मेरा भाई देख लेगा तो वो अम्मी से मेरी शिकायत कर देगा और मेरा घर से बाहर निकलना भी बंद करवा देगा।”                   

मेरी गर्दन पर हाथ मार कर वो कहने लगी, “पागल! अगर मुझे कहीं दूर जाना होता तो तुम बच्चा पार्टी को थोड़े ही लेकर जाऊँगी।” मेरी दोस्त ने मेरी तरफ़ देख कर हामी भरी। मैंने उन्हें कहा कि चलो चलते हैं। महक ने कहा, “हुरर्रे... कितनी देर में तुम लोग मानी हो।” मैंने कहा, “चलें!” महक ने कहा, “गगन के पास चलो, वहाँ से ई-रिक्शा लेंगे।”

हम सभी शनिबाजार वाली सीधी रोड से निकले। ईद की वजह से आज सारे बाज़ार में झालर लगी थी जिनकी आवाज़ हवा के साथ-साथ हमारे कानों में पड़ रही थी। उसी के साथ मुर्गा मार्केट की बदबू भी थी। हम सभी चुन्नियों और स्कार्फ  से चेहरा ढक कर गगन पहुँचे। बदबू से मेरा सिर ही चकरा गया। हम इस जगह से कम ही गुजरते हैं। मैंने सोचा कि जो लोग यहाँ  काम करते हैं, उन्हें इस बदबू की आदत हो गई होगी। 

हम सब गगन सिनेमा पहुँच गए। महक ने ई-रिक्शेवाले से कहा, “अंकल हम सबको चेतक कॉम्प्लेक्स जाना है, कितने रुपये लगेंगे वहाँ जाने में?” रिक्शेवाले ने कहा कि सौ रुपए लगेंगे। हम सब रिक्शे में बैठ कर चेतक की तरफ़ जाने लगे। तभी महक ने मेरी तरफ़ देखा और बोली, “देख मैं जहाँ तुझे लेकर जा रही हूँ वहाँ से आने के बाद अपने घर में उस जगह के बारे में कुछ मत बताना। ठीक है। समझ आई कि नहीं!”

मैं मन ही मन सोचने लगी कि ये चेतक के बारे में घर पर बताने से मना क्यों कर रही है। मैंने महक से पूछा, “चेतक में क्या होता है?” उसने कहा, “हमारी सुंदर नगरी के रेस्टोरेंट से थोड़ा अलग है पर तुझे वहाँ अच्छा लगेगा। अब चुपचाप बैठ जा। चेतक आनेवाला है।”

अंकल ने ई-रिक्शा रोका और कहने लगे, “लो आ गए चेतक, अब उतर जाओ”। महक ने सौ रुपये दिए। हम ई-रिक्शे से उतरे तो मैंने देखा कि वहाँ बहुत सारी कपड़े की दुकान थी। मैंने कहा कि कपड़े खरीदने लाई हो क्या हम सबको? उसने कहा, “चेतक इन दुकानों के अंदर है।”

महक हम सबको दुकानों के अंदर ले जाने लगी। हम सब चेतक के दरवाज़े पर आए तो वहाँ हल्की आवाज़ में गाने बज रहे थे। साथ ही सिगरेट की गंध आने लगी। मुझे खाँसी होने लगी। महक ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई। हम सब भी उसके पीछे चलने लगे। वहाँ बहुत सारे लड़के और लड़कियाँ एक साथ डांस कर रहे थे। आगे की तरफ़ तीन लड़कियाँ स्मोकिंग कर रही थीं। वे अपने मुँह से सिगरेट के धुएँ को छल्ले की तरह निकाल रही थीं।

एक ग्रुप बर्थडे मना रहा था। उस जगह पर डीजे भी लगा था। सभी अपनी-अपनी पसंद का गाना चलवा रही थीं। और अपनी-अपनी पसंद का खाना भी मंगवा रही थीं। पहले तो वहाँ का माहौल देख कर मुझे और मेरे दोस्तों को बहुत घबराहट-सी होने लगी। मेरा दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा। मेरी एक दोस्त कहने लगी, “यार ये जगह बहुत अजीब लग रही है, मुझे तो बहुत डर लग रहा है, चल यहाँ से जल्दी।”

महक ने बोला, “पहली बार तुम सब की ही तरह मुझे भी ऐसे ही लगता था। लेकिन, अब मैं इन सब को देख कर सहज रहती हूँ। यह तो अपनी-अपनी पसंद की बात है कि आप कैसे मजे करते हैं। अगर हमें स्मोकिंग नहीं करनी तो नहीं करनी, लेकिन स्मोकिंग करने वाली लड़कियों को बुरी नज़र से नहीं देखना चाहिए।” मैंने कहा, “लेकिन ये सब करने वाली लड़कियों को ख़राब कैरेक्टर का माना जाता है।”

महक ने कहा, “सिगरेट पीने का कैरेक्टर से क्या संबंध? तब तो चाउमीन खाना और कोल्ड-ड्रिंक पीने को भी ख़राब नज़र से देखना चाहिए। हमें ईद के दिन सिर्फ़ घर की बनी सेवइयाँ ही खानी चाहिए। यह क्या बात हुई कि जितना तक हम करें उतना अच्छा और कोई उससे अलग करे तो बुरा। तू तो उन आंटियों की तरह परेशान हो रही है जो गली में  जींस और टी-शर्ट पहनी लड़कियों को नहीं देखना चाहती। तुम ही तो कहती हो कि आंटी को जींस न पहनना है तो न पहनें, हमारे पहनने से क्या परेशानी है? जींस तो हमने अपने शरीर पर डाला है न?”

मुझे और मेरी सहेलियों को बात समझ में आ गई। हमारा एक महीने से बनाया प्लान चौपट हुआ तो क्या हुआ, आज हमने अपनी दुनिया से कुछ अलग तरह का तो देखा। हमने वहाँ जम कर डांस किया। उसके बाद हमें भूख लगने लगी। मैंने महक से कहा, “सुन अब हम पम्मी रेस्तरां में जा रहे हैं।” उसने बोला, “क्यों, यहीं खा लो न!” मैंने कहा, “नहीं ये जगह महँगी है वैसे भी उसके खाने का जवाब नहीं।”

महक तो अभी भी सिर्फ़ डांस ही कर रही थी। उसकी कुछ सहेलियाँ भी आई हुई थीं। मैंने सोचा कि ये सभी लड़कियाँ हमारे ही मोहल्ले की हैं, लेकिन कभी इतने खुले अंदाज में नहीं दिखीं। लग ही नहीं रहा ये वही लड़कियाँ हैं। सभी की हालत हमारी जैसी है। हमारे अम्मी-अब्बू हमें अपने दायरे से बाहर निकलने देने से घबराते हैं। इसके लिए सख्ती भी करते हैं। वहाँ नाच-गा रही लड़कियों को देख कर लगा कि हमें इतना-सा खुश रहने के लिए भी झूठ बोलना पड़ता है। थोड़ा-सा घूमना, खुल कर डांस करना, इन सबके लिए हमें वहाँ आना पड़ता है जिसे हम अपनी दुनिया नहीं मानते हैं।

अब तो मेरी दोनों सहेलियों का भी मन नहीं था चेतक से निकलने का। फिर हमने कहा कि हम अपनी बाकी की सहेलियों को भी यहीं लाएँगे। मैंने घड़ी में समय देख कर कहा, “अरे! दो बज गए। चलो यार, अम्मी की कॉल आ जाएगी फिर हम मस्ती भी नहीं कर पाएँगे।” हमने फटाफट रिक्शा किया और बैठ गए। आज तो रिक्शेवालों की लंबी क़तार थी। मेरी सहेलियाँ खुश थीं कि चलो आज हमने खुलकर डांस किया। एक सहेली बोली, “दोनों लड़कियों को देखा था जो बहुत सुंदर लग रही थीं, कितनी सिंपल थीं न। बस जींस-टॉप पहने हुए थी, काश हम भी पहन लेते।”

मैं अपनी दोनों सहेलियों को देख रही थी। नई जगह पर थोड़ी देर समय बिताने के बाद इनके चेहरे पर भी उन लड़कियों जैसी चमक आ गई थी जो चेतक में मिली थीं। उनके बात करने का अंदाज ही बदल गया था। हम बातें करते-करते ‘पम्मी रेस्टोरेंट’ आ गए। आज तो यहाँ पर बहुत भीड़ है। ज़्यादातर लोग परिवार के साथ आए थे। चेतक में तो बड़े लड़के-लड़कियाँ ही जा सकते थे। पर इस जगह पर हमेशा रौनक लगी रहती है। पेड़-पौधे लाइट सब कुछ है और सबसे अच्छा ये है कि यहाँ हमारी पसंद का खाना मिलता है।  हम सभी ने अपनी-अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया और खूब फ़ोटो खींची।

वहाँ कई और भी लोग मौजूद थे। वे हमें ऐसे देख रहे थे जैसे हमने चेतक में घुसते ही सिगरेट पीती लड़कियों को देखा था। शायद हमारा ज़ोर-ज़ोर से बातें करना उन्हें पसंद नहीं आ रहा था। मैंने और मेरी दोनों सहेलियों ने चेतक कॉम्प्लेक्स वाली लड़कियों की ही तरह पोज बनाए और खूब वीडियो बनाए। हम अपने आसपास के लोगों की उसी तरह परवाह नहीं कर रहे थे, जैसे चेतक में मौजूद लड़कियाँ नहीं कर रही थीं। ये बेपरवाही अचानक से हमारे अंदर आई थी और हम सब इसे लेकर बेहतर महसूस कर रहे थे। वो अलग-सी लड़कियाँ थीं और अब हम उनके जैसा महसूस कर रहे थे। हमने रेस्टोरेंट में बैठ कर ही पुरानी और नई तस्वीरों को देखा। पिछली ईद पर तो हम शनिबाजार में घूमे थे। इस बार हम एक नई जगह पर गए और हमारी सोच का दायरा बढ़ा। एक सहेली बोली, “यार इस बार मेरी ज़्यादा अच्छी तस्वीरें आई हैं।”

मेरी और सहेलियों की ईद इतनी मुबारक रहेगी सोचा न था। मैंने मन ही मन उन अलग सी लड़कियों को शुक्रिया कहा। 

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