चाँदनी की चाऊमीन पार्टी / महकनूर
‘हाँ जी सुनो, क्या कोई फैशन शो चल रहा है? चलो, चलो बहुत फैशन हो गया अब दो चोटी बना लो।’ चाँदनी ने स्कूल पहुँचते ही गैलरी में खड़ी लड़कियों के सिर की तरफ़ देख टीका-टिप्पणी शुरू कर दी। जिन लड़कियों के बाल दो चोटियों में नहीं बँधे थे वह उन्हें देख कर सिर हिला कर कुछ यूँ कहती दिखती - अच्छा आज तुम्हें बताती हूँ। कुछ लड़कियाँ उसे देख कर मुस्कुराने लगीं तो कुछ मुँह बनाने लगीं। चाँदनी के स्कूल में आते ही कुछ ऐसा ही माहौल होता है। आख़िर स्कूल की हेड गर्ल जो ठहरी।
हर कक्षा की तरह इस बार 11वीं कक्षा की टॉपर बनी चाँदनी का पूरे स्कूल में दबदबा है। हेड गर्ल बनने के बाद से तो वह खुद को प्रिंसिपल मैडम जैसी ही समझने लगी है, मानो पूरे स्कूल का ध्यान रखना उसी की जिम्मेदारी हो। वह किसी की भी शरारत को बख्शती नहीं है और फौरन अपनी कापी में उसका नाम नोट कर लेती है। कभी-कभी तो उसकी शिकायतों की लंबी लिस्ट को देख कर क्लास टीचर भी हँस देती थी कि भई आज तो कोई भी नहीं बची।
हेड गर्ल बनने के बाद से स्कूल की लड़कियों ने उसे चमची चाँदनी भी कहना शुरू कर दिया क्योंकि वह लड़कियों की हर शरारत क्लास टीचर तक पहुँचा देती थी। चाँदनी चश्मा पहनती थी इसलिए उससे नाराज़ लड़कियाँ उसे चमची चाँदनी के साथ चश्मिश चाँदनी भी कहती थीं। कुछ लड़कियाँ उसे देखते ही डबल बैटरी सिंगल पावर कहने लगती थीं।
मज़ेदार बात यह है कि दो चोटी मिशन में जुटी चाँदनी खुद के बालों की दो चोटियाँ नहीं बनाती थी। एक बार एक लड़की ने कहा कि तू खुद दो चोटी क्यों नहीं करती जो पूरे स्कूल की लड़कियों पर हुक्म चलाती है। चाँदनी ने अपना सिर उसकी तरफ़ झुकाते हुए कहा, “ले मेरे इन छोटे बालों की तू ही चोटी बना दे।” उस लड़की ने भी उसके बालों को समेटते हुए कहा, “लो बन गई चोटी।” अपने गर्दन तक के बालों को छोटा बताते हुए चाँदनी इस बात पर अड़ी रही कि उसके बाल चोटियों के लायक नहीं। यह दूसरी बात है कि और लड़कियों के लिए उतने ही बड़े बालों पर दो चोटियाँ बनाने का हुक्म सुना दिया जाता था।
स्कूल की बहुत-सी लड़कियों को यह बात अच्छी नहीं लगती कि इतनी खड़ूस चाँदनी को क्लास टीचर मैम बहुत समझदार समझती हैं। चाँदनी को तो हर मैम पसंद करती हैं। एक दिन एक लड़की ने चाँदनी की शिकायत करते हुए मैम से कहा, चाँदनी बहुत चालू है।”
मैम ने हँसते हुए जवाब दिया, “चालू मतलब...?”
“मतलब जो बंद न हो।”
“तो बंद क्यों होना। सारी लड़कियों को चालू होना चाहिए।”
उस लड़की को समझ नहीं आया कि मैम ने चालू जैसे खराब शब्द की तारीफ़ कैसे कर दी। धत्त इस चाँदनी की शिकायत भी करने जाओ तो तारीफ़ ही निकल जाती है। स्कूल में लड़कियों का एक ग्रुप ऐसा भी है जो चाँदनी का बहुत बड़ा फैन है। चाँदनी अपने इन दोस्तों का खास ख़्याल रखती है। असेंबली लाइन में देरी से पहुँचने वाली लड़कियों को वह लाइन में लगवा कर टीचर की डाँट से भी बचा लेती है।
स्कूल की असेंबली में प्रार्थना चाँदनी ही करवाती। असेंबली में अखबारों की हेडलाइंस भी वही पढ़ती थी। अखबारों की हेडलाइंस पढ़ते वक़्त चाँदनी को ऐसा लगता जैसे वह टीवी पर न्यूज पढ़ने वाली एंकर हो। यह सोच कर वह हेडलाइंस को और अच्छे से पढ़ती। मंच पर चढ़ते ही चाँदनी के चेहरे की चमक बढ़ जाती थी। तब उसे लगता था कि वह वाकई उन लड़कियों को हेड कर रही है जो उससे थोड़े नीचे मैदान में खड़ी होकर उसे सुन रही हैं। स्कूल का यह वक़्त चाँदनी को सबसे अच्छा लगता था।
मेरी सहेली सना के लिए तो चाँदनी एकदम हीरोइन है। एक दिन सना को कुछ लड़कियाँ चाँदनी की चमची कह कर चिढ़ा रही थीं। सना को पता था कि अब इन लड़कियों का पोपट होने वाला है। लड़कियाँ असेंबली में जाने के पहले अपने वाटर बोतल गैलरी की दीवार पर रख देती थीं। सना से पंगा लेने के दो दिन बाद असेंबली खत्म होते ही लड़कियों ने दीवार से अपनी-अपनी बोतल उठा कर पानी पीना शुरू किया। पानी पीते ही वे थू-थू करने लगीं। सना की हीरोइन चाँदनी ने अपना काम कर दिया था। उसने लड़कियों की वाटर बोतल में शौचालय के नल में आने वाला गंदा पानी भर दिया था। लड़कियों को पूरे दिन पानी का वह स्वाद याद कर उल्टी जैसा महसूस होता रहा और वे सना और चाँदनी को कोसती रहीं।
एक दिन चाँदनी के दोस्तों के ग्रुप में से वाजदा ने कहा कि उसने बहुत दिनों से चाऊमीन नहीं खाई है। चाँदनी ने तुरंत एलान किया, “चलो चाऊमीन पार्टी करते हैं।” लेकिन सभी लड़कियों के पास चाऊमीन के लिए पैसे नहीं थे। चाँदनी ने तय करवाया कि जिन लड़कियों के पास पैसे हैं उनसे मिला कर जिनके पैसे नहीं हैं काम चल जाएगा। सबने चाँदनी की लीडरशिप में पैसे इकट्ठे किए और चल पड़ीं ‘अहान चाऊमीन कार्नर’ की ओर। अभी स्कूल छूटा था तो चाऊमीन की उस छोटी-सी ठेलेनुमा दुकान पर काफ़ी भीड़ थी। लड़कियों को वहाँ पहुँच कर लगा कि इतनी भीड़ में चाऊमीन खाने में देर हो जाएगी। लेकिन ‘अहान चाऊमीन कार्नर’ को चलाने वाला लड़का चाँदनी को जानता था। चाँदनी को देखते हुए मुस्कुराया और बोला, “जल्दी बताओ कितने की बनाऊँ?”
चाँदनी ने कहा, “छह हाफ प्लेट।”
चाऊमीन वाले ने और लोगों के लिए प्लेट बनानी बंद कर पहले चाँदनी एंड कंपनी की प्लेट तैयार कीं। प्लेट तैयार करते वक़्त पूछा, “तीखा न।”
चाँदनी ने कहा, “हाँ, हाँ तीखा बनाना।”
मैं और सना चाँदनी का यह जलवा देख कर खुश थे। जिन लड़कियों ने पैसे नहीं दिए थे वे प्लेट लेने में झिझक रही थीं। चाँदनी ने सबसे पहले उन लड़कियों को प्लेट पकड़ाई जिनके पास पैसे नहीं थे। चाऊमीन खाते वक़्त वाजदा को बहुत मिर्ची लगी तो चाँदनी ने तुरंत अपने बैग से बोतल निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिया। सना ने कहा,”ध्यान से वाजदा चाँदनी अपनी चाऊमीन पार्टी में टायलेट का पानी न पिला दे।” इसके बाद सभी लड़कियाँ ज़ोर से हँसने लगी। कुछ दूर खड़े लड़कों को मस्ती में चाऊमीन खाती लड़कियाँ अच्छी नहीं लग रही थी। खासकर जिस तरह चाँदनी लीड कर रही थी तो लड़कों को लगा कि बहुत हीरोइन बन रही है, इसे परेशान करना चाहिए। उधर चाँदनी ने कहा, “पैसे बच गए हैं चलो एक-एक आईसक्रीम खाते हैं।”
चाँदनी और उसकी दोस्तों ने चाऊमीन की प्लेट कचरा-डिब्बे में डाली और आगे बढ़ गईं। तभी एक बाइक आगे आई। उस पर पीछे बैठे लड़के ने चाँदनी की कमर पर हाथ मारा। चाँदनी ने उसके बढ़े हाथ को खींच दिया और लड़का बाइक से गिर पड़ा। उसके गिरने के झटके में चाँदनी भी गिर गई। अपनी चोट की परवाह न कर वह लड़के पर झपट पड़ी। उसने उसके गाल पर चांटों की बरसात कर दी। मैं और सना यह देख कर डर गई। हम सब बगल की दुकान की पटिया पर खड़े हो गए। जो लड़का बाइक चला रहा था उसे गिरने के कारण चोट लगी थी तो वह भी पटिया पर आकर बैठ गया। सना ने उसे एक लात मारी तो वह पटिया से गिर गया। लेकिन, वह बिना कुछ बोले दूसरी तरफ़ जाकर बैठ गया।
चाँदनी अभी तक उस लड़के की पिटाई कर रही थी। आसपास की औरतें खड़ी होकर बोलने लगीं, “देखो इस पिद्दी-सी लड़की ने कैसे इस लड़के का कचूमर निकाल दिया।” एक आंटी ने बोला, “ये लड़के ऐसे ही हैं, इनका ऐसे ही इलाज होना चाहिए।” तब तक वह लड़का चाँदनी के चंगुल से छूट कर भागा। चाँदनी को भी काफ़ी चोट लगी थी तो वह पटिया पर बैठ कर हाँफने लगी। चाँदनी के मुँह से बहुत गंदी गालियाँ निकल रही थीं। सारी औरतें उसकी तारीफ़ कर रही थीं कि लड़कियों को ऐसी ही होना चाहिए, सड़क पर बदतमीजों को धुन देना चाहिए। एक आंटी ने सना और वाजदा की तरफ़ देखते हुए कहा, “तुम दोनों तो इससे हट्टी-कट्टी हो फिर भी अलग-थलग खड़ी रही। ऐसी डरपोक दोस्तों का क्या काम।” यह सुन कर सना की आँखों में आँसू आ गए। सना को अपने लिए डरपोक शब्द अच्छा नहीं लगा। सना को यह सबकुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
चाँदनी की इस चाऊमीन पार्टी की खबर स्कूल में प्रिंसिपल मैडम तक पहुँची। स्कूल के सफ़ाई कर्मचारियों ने मैडम को चाँदनी की बहादुरी के किस्से सुनाए। दोपहर में लंच के बाद प्रिंसिपल मैडम ने चाँदनी को बुलाया। उन्होंने चाँदनी को पूरी बात बताने को कहा। चाँदनी ने उन गंदी गालियों के बारे में भी बताया जो उसने लड़कों की पिटाई करते वक़्त दी थी।
“मैम क्या मेरी बहादुरी की खबर अखबार में छप सकती है?’ चाँदनी के इस सवाल पर प्रिंसिपल मैडम चौंकी।
“क्यों छपनी चाहिए यह खबर?” उन्होंने पूछा।
“मैडम मेरी बहादुरी की खबर से और लड़कियों को प्रेरणा मिलेगी। मेरी खबर छपी तो मैं अपनी हेडलाइंस को असेंबली में पढ़ूँगी। कितना अच्छा रहेगा कि हेडलाइन छपे- चाँदनी ने गुंडे को चकनाचूर किया।”
प्रिंसिपल मैडम ने कहा, ”चाँदनी तुम बहादुर हो अच्छी बात है। तुम ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा हो और सामाजिक विज्ञान भी पढ़ती हो। सड़क पर खुद इंसाफ़ करना अच्छी बात नहीं है।”
चाँदनी को लगा मैडम कितनी खराब हैं, उसकी बहादुरी से जल रही हैं। उसने मन ही मन सोचा वहाँ सड़क पर आंटियाँ मेरी बहादुरी की तारीफ़ कर रही थीं और ये गलत बता रही हैं।”
मैडम ने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, “देखो चाँदनी, अगर उस झगड़े में तुम्हें ज़्यादा चोट आ जाती तो क्या होता? तुम्हारे हाथ-पाँव टूट सकते थे। तुम तो बुद्धिमान लड़की हो और रोज़ अखबार पढ़ती हो। खबरें तो पढ़ती होगी कि सड़क पर के ऐसे झगड़ों में जान भी चली जाती है। आगे से ऐसी कोई बात हो तो सड़क पर किसी को घसीट कर पीटने से अच्छा है कि तुम घर में या स्कूल में ये बात बताओ। हमें चाहिए कि पुलिस में शिकायत करें। यह जिम्मेदारी पुलिस की है कि उन लड़कों को क्या सजा मिलनी चाहिए।”
लेकिन मैडम एक दिन मैंने अखबार में खबर पढ़ी थी कि पुलिस थाने ने पंद्रह अगस्त पर उस लड़की को सम्मानित किया जिसने बाइक से घसीटे जाने पर भी चेन झपटमारों का मुकाबला किया। क्या यह बात गलत है?
प्रिंसिपल मैडम ने शांत भाव से कहा, “हाँ चाँदनी बिल्कुल गलत है। अगर उस लड़की की जान चली जाती तो? सड़क पर छेड़खानी को रोकना जरूरी है, लेकिन इसके लिए खुद मार-पिटाई नहीं करनी है।”
चाँदनी को लगा कि प्रिंसिपल मैडम पागल हैं। बहुत बड़ी जलनखोर हैं। वो तो सोच रही थी कि यह खबर अखबार में छप जाती तो हो सकता है, 15 अगस्त को पुलिसवाले उसे ही बहादुरी का अवार्ड देते। अवार्ड की खुशी में वह फिर चाऊमीन पार्टी करती।
प्रिंसिपल मैडम ने फिर कहा, “चाँदनी तुम अखबार की हेडलाइन बहुत अच्छा पढ़ती हो। क्या तुमने अखबार में कभी कोई गाली लिखी हुई देखी है।”
“नहीं”, चाँदनी ने कहा।
प्रिंसिपल मैडम ने आगे पूछा-“क्या कभी किसी न्यूज़ पढ़ने वाली को गाली देते सुना है”? चाँदनी ने कहा-“नहीं”।
प्रिंसिपल मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा-“बिल्कुल ठीक। ऐसा इसलिए कि एक गलत बात के जवाब में दूसरी गलत बात कर देना सही नहीं हो सकता है। बहादुरी और बुद्धिमानी इसमें है कि हम ज्यादा गुस्से में न आकर सड़क पर अपना नुकसान करने से बचें। हम बताएँ कि सड़क पर क्या गलत हो रहा है और जिनकी जिम्मेदारी है वो सही करेंगे। अच्छा याद करो एक बार स्कूल के गोदाम से सरकार की तरफ से आई वर्दियों की चोरी करते हुए एक लड़का पकड़ा गया था”।
“हाँ याद है”। चाँदनी ने सिर हिलाते हुए कहा।
“तो क्या मैंने उसकी पिटाई की? उसे गालियाँ दीं? मैं तो प्रिंसिपल हूँ। तुम्हारे हिसाब से मुझे यही करना चाहिए था?”
प्रिंसिपल मैडम की इस बात पर चाँदनी चुप थी। उन्होंने आगे कहा-“मैंने बस आगे शिकायत भेज दी, और उस लड़के को स्टोर कीपर के काम से हटा दिया गया। यही हुआ था न।” तभी स्कूल की छुट्टी की घंटी बज गई। प्रिंसिपल मैम ने चाँदनी से कहा-“अच्छा अब तुम घर जाओ। हम फिर एक बार बात करेंगे।”
चाँदनी प्रिंसिपल मैडम के रूम से बहुत गुस्से में निकली। उसके मुँह से बार-बार यही लग रहा था जलनखोर। पूरी रात चाँदनी ने बिस्तर पर करवट बदलते हुए प्रिंसिपल मैडम की बात पर सोचा और सुबह होने के पहले तय किया कि उसे क्या करना है। अगली सुबह चाँदनी स्कूल में एक माँग-पत्र पर सभी लड़कियों से दस्तखत ले रही थी। माँग-पत्र में पास की पुलिस चौकी से कहा गया था कि स्कूल के पास पुलिस वालों की गश्त बढ़ाई जाए। इसके साथ ही उन लड़कों पर कार्रवाई करने की माँग की जिन्होंने चाँदनी के साथ छेड़खानी की थी। इसके एक हफ़्ते बाद चाँदनी स्कूल पहुँची तो स्कूल के गेट पर खड़े पुलिसवाले अंकल ने उसे ‘गुड मार्निंग’ कहा। चाँदनी ने चौंकते हुए पूछा-“आप मुझे जानते हैं”?
पुलिसवाले अंकल ने कहा- “हाँ, सीसीटीवी में देखा था तुम्हें एक लड़के की पिटाई करते।”
चाँदनी हँसते हुए स्कूल के अंदर चली गई। स्कूल के गेट पर पुलिसवाले अंकल का खड़ा होना उसे बहुत अच्छा लगा।
चाँदनी की चाऊमीन पार्टी का यह किस्सा स्कूल में खूब मिर्च-मसाले के साथ सुनाया जाने लगा। सबसे खास तो पंद्रह अगस्त का दिन रहा। स्कूल में झंडा फहराने के बाद प्रिंसिपल मैडम ने चाँदनी की तारीफ़ करते हुए कहा कि कैसे उसकी वजह से स्कूल के आस-पास पुलिस सुरक्षा बढ़ गई और अब सड़क की दुकान पर चाऊमीन पार्टी करने में लड़कियों को कोई परेशानी नहीं होती। प्रिंसिपल मैम के कहने पर वहाँ मौजूद सभी लोगों ने चाँदनी के लिए ताली बजाई।
दूसरे दिन प्रिंसिपल मैडम के सहायक चाँदनी की क्लास में आकर अखबार देकर गए। हालांकि चाँदनी ने पहले पेज की हेडलाइन तो असेंबली में पढ़ी थी। उसने देखा कि अखबार के पहले पन्ने पर प्रिंसिपल मैडम ने लिख कर भेजा था-‘पेज चार पढ़ो’। चाँदनी ने अखबार के पेज चार पर कोने में एक रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट का नाम था- ‘चाँदनी की चाऊमीन पार्टी’। कैसे एक लड़की ने अपने स्कूल की सभी लड़कियों के लिए सड़क को सुरक्षित कर दिया।
चाँदनी ने क्लास में अपनी दोस्तों की तरफ़ देखते हुए हल्ला किया-आज मेरी तरफ़ से चाऊमीन पार्टी।

