खुशरंग लड़कियाँ- भाई का मेकअप / साक्षी

संडे का दिन यानी स्कूल की छुट्टी। लेकिन आज घर में छुट्टी का माहौल नहीं था। पापा की तो वैसे भी संडे को ड्यूटी होती है। संडे हर किसी के लिए संडे नहीं होता। जब हम कहते कि आज तो संडे है तो पापा अक्सर बोलते कि संडे को संडे मत बोला करो। मम्मी अपने काम से बाहर गई थीं। हमेशा हुड़दंग करने वाली छोटी बहन भी उनके साथ गई थी। बड़ी बहन छत पर धूप में बैठ कर बिंदी का माल बना रही थी। 

ख़ाली घर और बोरिंग लग रहा था। घर का सारा काम करने के बाद भी समझ नहीं आ रहा क्या करूँ! कभी पलंग पर लेटती तो कभी कमरे का चक्कर लगाने लगती। स्कूल की सहेलियों की याद आ रही थी। यूँ तो मैं अपने घर के सारे काम मस्ती से करती हूँ। घर आते ही मुझे सिर्फ़ काम ही दिखाई देता है। आज तो लग रहा था जैसे सारे काम भी छुट्टी पर गए हैं या मुझे दिख ही नहीं रहे हैं। मैंने कमरे में नज़र घुमाई तभी मेरी नज़र घड़ी पर गई, जो मेरे घर की चौखट के सामने से दिखती है। उसमें तो सिर्फ़ 12 ही बजे हैं। मैं सोचने लगी कि अब क्या करूँ ख़ाली बैठे-बैठे? मैंने सोचा स्कूल का काम ही कर लूँ। स्कूल के काम के बारे में सोचने पर भी बोरियत होने लगी। मेरा मूड तो कुछ मस्ती करने का कर रहा था। तभी मेरी नज़र अपने छोटे भाई पर गई। उसका प्यारा-सा चेहरा देख कर मुझे बहुत प्यार आया। फिर मैंने उसके चेहरे को गौर से देखा। तभी मेरे मन में एक आइडिया आया कि क्यों न इसके चेहरे पर मेकअप ट्राई किया जाए? वह तैयार भी हो जाएगा और मेरे मेकअप की प्रैक्टिस भी हो जाएगी। 

मैं मेकअप का सामान निकालने के लिए अलमारी की तरफ़ बढ़ी। पलंग के बराबर में ही हमारी अलमारी है। हमारी अलमारी को बने वैसे दो साल ही हुए हैं। लकड़ी की बनी अलमारी चॉकलेटी रंग की है। वह लकड़ी की बनी हुई है उसका रंग चॉकलेटी है। इस अलमारी के बनने के बाद मम्मी सहित हम सभी भाई-बहन बहुत खुश हुए थे। इसके अंदर जगह अच्छी है और अब ज़्यादातर चीज़ें इसमें रखी रहती हैं तो घर बिखरा हुआ नहीं लगता। इस लंबी अलमारी में चीज़ें ज़्यादा ठूस न दी जाएँ, मम्मी हमेशा इसका ख़्याल रखती हैं। हमें कहती हैं कि गंदी-संदी चीज़ें इसमें मत रखा करो।

मैंने एक जूते के डिब्बे को अपना मेकअप बॉक्स बना लिया था। यह डब्बा मेरी बहन की सहेली ने उसे दिया था, मेकअप का सामान रखने के लिए। हम दोनों बहनों ने इस डब्बे में अपना सारा मेकअप का सामान रख दिया। हम बहनें जब मेकअप करना सीखती हैं तो मम्मी नाराज़ नहीं होती हैं। वो तो कहती हैं कि अच्छे से सीख लो। बाद में ब्यूटीशियन का कोर्स भी किया जा सकता है। अपनी अलमारी खोल कर मैंने दो पीले रंग की चुन्नियाँ निकालीं। इसके साथ ही मेकअप बॉक्स भी निकाल लिया। फिर मैंने अपने भाई नक्श को आवाज़ लगाई। मेरी आवाज़ सुनते ही वह तुरंत आ गया। मैंने उससे कहा- “नक्श एक बात सुन। मैं तुझे दुल्हन की तरह तैयार करती हूँ।”

नक्श ने बोला- “आज क्यों तैयार करोगी मुझे? रोज़ तो तैयार नहीं करती तुम मुझे। कंघी भी ठीक से नहीं करती हो मेरी!”

मैंने कहा-“आज मेरे पास टाइम है न। देखना तू कितनी सुंदर दुल्हन बनेगा।”

नक्श को भी उत्सुकता हो गई थी। उसे लगा यह बढ़िया खेल होगा। उसने पूछा-“तू पहले मेरा क्या करेगी, कोई काम तो नहीं करवाएगी न मुझसे, मैं अच्छा लगूँगा न?”

मैंने कहा- “तू देख तो कितना मजा आएगा। और तू आठ साल का हो गया है, अब तुतला कर क्यों बोलता है? लेकिन मेकअप करवा कर तू और सुंदर लगेगा।”

नक्श ने थोड़ा चिढ़ कर कहा- “क्या मैं तुझे लड़की जैसा दिखता हूँ।”

मैंने उसके गालों को हिलाते हुए कहा-“बात लड़की जैसे दिखने की नहीं है। देख तो सही तू कितना सुंदर है। तेरी नाक और आँखें कितनी सुंदर हैं।”

नक्श की आँखें थोड़ी बड़ी और उभरी हुई हैं। उसकी नाक भी पतली-सी है। फिर मैं बोली – “आ जा जल्दी करूँ तेरा मेकअप। फिर अच्छी-सी फ़ोटो खीचूँगी। इधर आकर बैठ जा।”

उसने बोला, “नहीं मैं नहीं करवा रहा, मैं खेलने जा रहा हूँ अपने दोस्त के साथ।”

मैंने बोला, “बाद में खेलने चले जाना।” उसने बोला, “नहीं, नहीं मैं जा रहा हूँ।” फिर मैंने नक्श से बोला, “देख ले फिर तुझे अपने साथ घुमाने नहीं ले जाऊँगी। मेले में भी नहीं ले जाऊँगी।” अब नक्श मान गया था।  

सबसे पहले मैंने उसकी कमर पर एक पीली चुन्नी को साड़ी की तरह बाँध दिया। फिर दूसरी चुन्नी से उसका लंबा आँचल बना कर दुल्हन का घूँघट-सा बना दिया। मैंने उसे कुर्सी पर बिठा दिया। कुर्सी के पीछे खड़े होकर मैं उसका मेकअप करने लगी। सबसे पहले मैंने उसके चेहरे पर थोड़ा फाउंडेशन लगाया। शनि बाजार से मैं मेकअप ब्लेंडर लेकर आई थी। ब्लेंडर से मैं उसके चेहरे को थपथपाने लगी ताकि फाउंडेशन और पाउडर अच्छे से मिल जाए। जैसे ही मैंने उसकी आइब्रो ठीक करने की कोशिश की उसने कहा, “इस पेंसिल से क्या लिख रही मेरी आई ब्रो के पास?”

मैंने कहा, “अरे पागल ये पेंसिल नहीं है। जिनकी आईब्रो ठीक नहीं होती इससे सुंदर हो जाती है।”

नक्श को अब मजा आ रहा था। बार-बार चेहरा थपथपाने से उसे नींद आ रही थी। जब मैं उसके बाल बनाने लगी तो वह नींद में झुकने ही लगा। मैं उसे थपकी देकर उठा देती। नक्श की छोटी-सी प्यारी चुटिया बन गई थी। अब बारी थी लिपिस्टिक लगाने की। लिपिस्टिक लगते ही नक्श बोला, “मेरे होठों पर यह क्या लगा दिया।”  मैं बोली, “अरे पागल तुझे पता नहीं कितना अच्छा लग रहा है।”

अब नक्श दुलहन की तरह तैयार था। कमरे में गोंद की गंध पसरते ही मुझे लग गया कि बड़ी बहन छत से नीचे आ गई है। उसके कमरे में दाखिल होने से पहले मैंने नक्श का मेकअप पूरा किया और मेकअप बॉक्स को अलमारी में रख दिया।

बड़ी बहन का चेहरा बहुत थका हुआ लग रहा था। नक्श को देखते ही वह हँसने लगी। मैंने कहा, “देखो कितना सुंदर लग रहा है नक्श।” 

हँसते-हँसते मेरी बहन के पेट में दर्द हो गया। मैंने पूछा, “तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या?”

उसने नक़्श की तरफ़ देखा और बोलने लगी, “क्या बंदर बना दिया है तूने, देखियो बेचारे को।”

नक्श जो अभी तक खुद को देख कर खुश था, यह सुन कर रुआंसा हो गया। उसने चुन्नियों से बनी साड़ी खोल दी और पानी से मुँह धोने लगा। सच बोलूँ तो मेकअप के बाद नक्श बहुत सुंदर और प्यारा लग रहा था। वह भी खुश हो रहा था। लेकिन बहन के बोलने के बाद नक्श को लगा कि मैंने उसके साथ कुछ गलत कर दिया है। मुझे पता नहीं चल रहा था कि अब वह मेरे मेकअप करने से गुस्सा है या बहन की बातों से। मेरी बहन बोलने लगी, “एक तो तूने मेकअप का सामान बर्बाद किया। दूसरे पापा को पता चल गया कि तूने इसे लड़की बनाया है, तो तुझे बहुत डाँट पड़ेगी।”

अब मुझे डर लगने लगा कि कहीं मुझे आज डाँट न पड़ जाए। मेरे पापा को तो वैसे भी हमारा मस्ती करना पसंद नहीं है। शाम होने तक मेरी मस्ती डर में बदलने लगी। मैं बहाने सोचने लगी। फिर थक-हार कर फैसला किया कि अगर पापा डाँटेंगे तो चुपचाप डाँट सुन लूँगी। कौन-सा पहली बार डाँट सुनूँगी। पापा और मम्मी दोनों ही शाम सात बजे घर आए। मैंने उन्हें चाय बनाकर दी। मम्मी ने नक्श के हाथ से फ़ोन छीन लिया और उसे डाँट कर कहने लगी, “क्या सारा दिन फ़ोन में लगा रहता है, जा जाकर ट्यूशन का काम कर।”

पापा अभी भी चाय पी रहे थे। फिर मेरी बहन ने बोला कि अरे मम्मी देखा नक्श कितना सुंदर लग रहा था। मेरा दिल धड़कने लगा। मम्मी ने पूछा क्या हुआ। बहन ने बताया कि कैसे मैंने नक्श को आज लड़की बना दिया था। मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी। पापा कहने लगे, “अरे नक्श को कहो इन लड़कियों से दूर रहा करे। कल को लिपिस्टिक, मेकअप पसंद आने लगेगा तो लोग इसे लड़की समझेंगे।” 

मम्मी ने फ़ोटो देखने के लिए फ़ोन उठाया। बहन भी पास आकर हँसते हुए बैठ गई। लेकिन फ़ोन में नक्श की दुल्हन वाली कोई फ़ोटो नहीं थी। बहन भी चौंक गई। बहन ने तो  सिर्फ़ नक्श को देखा था, उसे लगा फ़ोटो तो खींची गई होगी। लेकिन फ़ोन में नक्श के लड़की बनने की कोई फ़ोटो नहीं थी इसलिए मामला जल्दी ही ख़त्म हो गया। मम्मी और बहन रात का खाना बनाने लगी। पापा को गुस्सा आया ही नहीं क्योंकि फ़ोन में फ़ोटो ही नहीं थी। रात में खाना खाने के बाद हम सोने चले गए। नक्श मेरे पास आकर लेट गया। मैंने उससे पूछा कि फोटो तुमने डिलीट कर दी थी क्या? नक्श ने कहा, “हाँ, मुझे लगा बहन मेरी लड़की वाली फ़ोटो सबको दिखा देगी। इसलिए मैंने डिलीट कर दी थी।” 

नक्श ने फिर कहा, “लड़की जैसा दिखना बुरा है क्या? लड़की जैसा दिख कर मुझे बुरा नहीं लगा था। मुझे तो मैं सुंदर लग रहा था।” मैंने नक्श को कहा, “तूने आज मुझे बचा लिया।” नक्श हँसने लगा।

इसके बाद से मैंने नक्श को कभी लड़की नहीं बनाया। नक्श पूरी तरह लड़कों जैसा ही है। लेकिन लड़की बन कर उसे बुरा नहीं लगा था यही सोच कर आज भी मुझे अच्छा लगता है। काश, नक्श की वह मेकअप वाली फ़ोटो डिलीट नहीं हुई होती।


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