बहनापा - बातें मंगल बाज़ार की
समय – दोपहर साढ़े तीन बजे
पात्र-परिचय
दिवांसी की मम्मी, पाँच नंबर की दूसरी गली में दो घर छोड़कर रहती हैं (बच्चों को स्कूल से
लाने के बाद सुला कर आईं)
अर्नव की मम्मी (सिलाई का काम छोड़ के आई)
परी की दादी, वहीं पास में रहती हैं (सो कर आई)
और कुनाल की मम्मी, अर्नव के घर के बगल में रहती हैं (अपने दोनों बच्चों का ट्यूशन का काम
करवा कर आई)
(पाँच नंबर की दूसरी गली में दो घर छोड़कर मेरे घर के सामने बैठक का दृश्य जहाँ
दिवांसी की मम्मी अपने घर के बाहर जीने पर बैठकर फ़ोन चला रही है । उन्होंने
गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और उनके सामने वाले घर के बाहर जीने पर बैठी
थी। अर्नव की मम्मी जिन्होंने गले में हरे रंग की चुन्नी डाल रखी थी। रोली दीदी की
मम्मी कुर्सी पर बैठी थी उन्होंने सूट-सलवार पहना था। उनके बाल काले और घने
थे। परी की दादी अंशिका के घर के बाहर चबूतरे पर बैठी थी। उनकी आँखें मोटी-
मोटी हैं और उसकी सेहत भी सही है। कुनाल की मम्मी जीने पर बैठी थी। उन्होंने
लाल रंग की लिपिस्टिक लगा रखी थी।)
दिवांसी की मम्मी रीता बोली, “सुनती हो बहन! मुझे दिवांसी के लिए
कपड़े ख़रीदकर लाने हैं। वैसे भी अब उसके पास कपड़े हैं ही नहीं। पहले
तो काम से ही कपड़े मिल जाते थे, तब कपड़े ख़रीदने की ज़रूरत नहीं
पड़ती थी, लेकिन कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा था तो मेरे काम
छूट गए।”
रोली दीदी की मम्मी, श्यामा बोलीं, ‘‘हाँ बहन! बोल तो तुम सही रही हो।
जब कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा था, तबसे सारे काम तो छूट ही
गए हैं; लेकिन अब तो काम लगते भी हैं तो उन कामों में काम तो ज़्यादा
होता है, पैसे कम। और अब तो बिना काम करे गुज़ारा भी नहीं होने वाला
है।”
परी की दादी, मीना ने कहा, ‘‘मुझे तो परी की चप्पल ठीक करवाकर
लानी है। उसकी चप्पल टूट गई है। अब तो मोची की आवाज़ भी सुनने को
नहीं मिलती। अब तो मोची कहीं दिखाई ही नहीं देते हैं। पहले मोची
गली-गली में घूमते थे, पर अब तो बहुत दूर-दूर बैठते हैं। और तो और
सस्ती चप्पल जल्दी ही टूट जाती है। आजकल के जमाने में तो जैसा पैसा
वैसी ही चीज़ मिलती है।
अर्नव की मम्मी गीता बोली, “मुझे भी मंगल बाज़ार से अपने लिए दो-चार
चुन्नी लानी है। मेरे पास सारी चुन्नी पुरानी ही रखी है। मेरा तो मन नहीं
करता उन पुरानी चुन्नियों को ओढ़ने का। वैसे भी मैं तो सूट पहनती नहीं
हूँ, बस वो चुन्नी गले में डाल लेती हूँ। घर में अकेली तो रहती हूँ, बस बच्चे
ही हैं। कहीं बाहर बाज़ार जाती हूँ तो गले में डाल लेती हूँ। मैं टी-शर्ट और
लोअर पर ही चुन्नी ओढ़ लेती हूँ।”
रोली दीदी की मम्मी, “हाँ वो तो है, बाज़ार के कपड़े जल्दी ही फट जाते
हैं। वह इसलिए है कि बाज़ार के कपड़े अलग फैक्ट्री में बनते हैं और दुकान
के कपड़े अलग फैक्ट्री में बनते हैं। वैसे एक बात तो है कि दुकान का कपड़ा
जल्दी नहीं फटता है चाहे उस कपड़े की सिलाई क्यों न उधड़ जाए। और
बाज़ार का कपड़ा होता है कि उसकी सिलाई तो उधड़ती ही है और कपड़ा
भी फटता है।”
परी की दादी, “मंगल बाज़ार अमीरों के लिए भी है और ग़रीबों के लिए
भी। मंगल बाज़ार का इंतज़ार बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को रहता है।
अब तो ग्राहकों को भी दुकानदार की पहचान हो गई है कि उसका
दुकानदार कहाँ दुकान लगाता है। मंगल बाज़ार में हर तरह का सामान
मिलता है।”
कुनाल की मम्मी, “अरे मुझे तो लिपिस्टिक और बिंदी लानी है; क्या बताऊँ
सारी लिपिस्टिक बच्चों ने ही घिस डाली है। और बिंदी तो सारी बिगाड़ ही
दी। अगर मेकअप के सामान का डिब्बा ऊपर रख दूँ तो कभी कुर्सी पर
चढ़कर निकाल लेते हैं तो कभी स्टूल पर चढ़कर। मैं तो बहुत परेशान हो
गई हूँ।”
अर्नव की मम्मी ख़ुश होकर बोलीं, “मुझे तो घर की सजावट का सामान
लाना है। एक तो वो लाने हैं जो प्लास्टिक के छोटे पौधे होते हैं, अगर उन्हें
घर में सजा भी दो तो कितना अच्छा लगता है। और मुझे लाइट भी लानी
है जिसे रात में जला देते हैं। सफ़ेद वाली लाइट की बात नहीं कर रही मैं
तो उस वाली लाइट की बात कर रही हूँ जो रंग-बिरंगी होती है।”
दिवांसी की मम्मी बोलीं, “मुझे तो बाज़ार से दिवांसी के लिए बैग लाना
है। क्या बताऊँ एक तो बैग भर कर बुक ले जाती है। मैं इतना मना करती
हूँ कि कम बुक लेकर जा लेकिन ये लड़की मेरी बात कहाँ सुनती है। इसको
तो बस अपने मन की करनी होती है।”
रोली दीदी की मम्मी थोड़ी परेशान होकर बोलीं, “बात तुम सही बोल
रही हो; लेकिन बच्चों को क्या पता कहाँ से पैसा आता है और कहाँ जाता
है। और वैसे भी मंगल बाज़ार के बैग भी इतने कहाँ चलते हैं और चले भी
तो बच्चे कहाँ चलने देंगे। इतनी सारी बुक भरकर ले जाते हैं जिस कारण
बैग तो जल्दी ही फट जाता है। और ऊपर से भारी बैग ले जाने के कारण
बच्चों के कंधे में भी दर्द होता है।”
कुनाल की मम्मी बोली, “मुझे तो किचन का सामान भी लाना है जैसे काँच
के गिलास, प्लेटे, चम्मच और भी सामान। अगर गिलास को स्लेब पर लगा
दो तो कितना अच्छा लगता है। रिश्तेदारों को भी काँच के गिलास से
चाय-पानी दे सकते हैं। प्लेट में बिस्कुट, नमकीन जो देना हो दे दो। मुझे तो
यह भी पता है कि वह दुकान कहाँ लगाता है। वह दुकान चौक पर केक
वाली दुकान के सामने जहाँ एक डॉक्टर की दुकान है वहीं ये कप-प्लेट की
दुकान लगाता है। कप-प्लेट का सेट लेना हो तो वहीं से लेकर आ जाना।”
अर्नव की मम्मी हिचकिचाकर बोलीं, “एक बात तो है जितना लोगों को
मंगल बाज़ार का इंतज़ार रहता है उतना ही मंगल बाज़ार में सँभलकर
चलना पड़ता है। फ़ोन, चेन और जो भी तुमने सोने की चेन पहनी होती है,
उसे तो सँभालकर रखना पड़ता है। एक तो इतनी भीड़ होती है कि पूछो
मत! उस भीड़ में चोर कौन है, पता ही नहीं चलता है। और तो और पर्स
भी सँभालकर रखने पड़ते हैं। ऊपर से मंगल बाज़ार में दुकानदार बहुत
तेज़-तेज़ चिल्लाते हैं कि कान और सिर में दर्द कर देते हैं। कोई बोलता है
कि ये ले लो, कोई बोलता है कि ये ले लो। लोग तो वहीं जाते हैं जहाँ पर
सेल होती है। बच्चों से लेकर बड़े लोग बाज़ार में छोले-भठूरे खाते हैं तो
कोई गोल-गप्पे खाने जाता है। वैसे भी बाज़ार में तो सस्ता खाने-पीने का
सामान मिल जाता है। मॉल में तो इतना महँगा खाने-पीने का सामान
मिलता है! औरतें छोले-भठूरे वाले की दुकान पर ही गर्म-गर्म छोले-भठूरे
खा लेती हैं। छोले-भठूरे के साथ तो अचार भी मिलता है। और चल बाज़ार
खिचड़ीपुर में ही लगता है और वो भी दिन के समय। ये मंगल बाज़ार 5
ब्लॉक से 9 ब्लॉक तक लगता है।”
परी की दादी बोली, “क्या बताऊँ चीनी तो इतनी महँगी हो गई है, 45
रुपए किलो। और बाक़ी का सामान भी तो लाना पड़ता है, पत्ती, नमक,
मसालें, आटा और भी खाने-पीने के लिए नाश्ता और रोज़ का दूध, पानी
का ख़र्चा भी तो होता है। इतना तो कमाते नहीं हैं जितने का राशन-पानी
आ जाता है। बहू ट्यूशन पढ़ा देती है जिस कारण घर के ख़र्चों में भी लग
जाता है। अब तो शरीर से ही परेशान हैं तो कमाने की भी क्या सोची
जाए। पहले सुबह उठकर काम पर जाओ और थके-हारे शाम को आओ
फिर तो सीधा रात को ही सोना होता है। सुबह उठो और शाम को थके-
हारे आओ, हमारे बस की तो है नहीं। वैसे ही पूरे शरीर में दर्द रहता है।
अब कहाँ हमसे काम हो पाएँगे।”
दिवांसी की मम्मी बोली, “मुझे तो बोतलों का एक सेट लेकर आना है।
बोतल तो बची ही नहीं है पानी पीने के लिए। बस दो-चार बोतल ही बची
है। मुझे तो पता नहीं है बोतल का सेट कितने में आएगा, लेकिन जाकर पूछ
लूँगी कि एक सेट कितने का है! वैसे तो एक सेट में छह बोतल होती है।”
मिनाली