बहनापा - फ़ोन-कथा

फ़ोन-कथा

समय: दोपहर चार बजे

पात्र-परिचय

दोपहर का दृश्य : धूप में घर के काम निपटाती और बात करती औरतें.. इनके नाम हैं :

सुशीला (सोसायटी से काम करके आईं)

महिमा (बच्चों को स्कूल के बाद खाना खिलाकर आईं)

रजनी (लड़के के स्कूल में पैरेंट मीटिंग होने के बाद आईं)

शिवानी (शाम के खाने के लिए सरसों का साग काटने के लिए लेती आईं)

शालू (टोकरी में माल बनाने के लिए आईं),

काजल (हाथ में ऊन और सुई लिए आई),

और रूमा (बच्चों को ट्यूशन छोड़ कर आई)

सुशीला आंटी अपने घर की चौखट पर बैठकर मटर छील रही हैं। महिमा और

रजनी अपने घर की चौखट पर बैठकर बातें कर रहे हैं। शिवानी और शालू अपनी

कुर्सी पर बैठे हैं। काजल पटले पर बैठी है। सुशीला ने छोटी बिंदी लगा रखी है।

उसका चेहरा गोल है। महिमा बहुत अच्छे कपड़े पहनती है। उसे कपड़े की बहुत

अच्छी पहचान है। रजनी ने एक पीले रंग का कुर्ता और नीचे हरे रंग की सलवार

पहन रखी है। शिवानी और काजल दोनों का रंग साँवला है, लेकिन उनके चेहरे

सुंदर हैं। शालू ने लाल लिपिस्टक और छोटी नग वाली बिंदी लगा रखी है।

महिमा अपना काम ख़त्म करके नीचे उतरकर आती है। जब वह नीचे आती है तो

उसे शालू और काजल दिखाई देते हैं। वह उनसे पूछती है कि तुम दोनों इधर

बैठकर क्या कर रहे हो?

काजल (लटें निकालकर) : अरे कुछ नहीं! बस आपस में बातचीत कर रहे हैं।

शालू (सीधे चलते हुए) : तुम भी आ जाओ, बैठो!

महिमा : मैं अपने घर में बोर हो रही थी, इसलिए नीचे आ गई; क्योंकि घर का

सारा काम तो ख़त्म हो गया। इसलिए सोचा नीचे ही आ जाऊँ।

शालू : रजनी, शिवानी और सुशीला को भी बुला लेते हैं।

रजनी और शिवानी सबकी आवाज़ सुनकर नीचे आ जाते हैं।

शिवानी : बुलाया था हम दोनों ने लेकिन वह फ़ोन चला रही थी, इसलिए उसने

सुना नहीं।

रजनी : वह तो फ़ोन ही चलाती रहती है।

महिमा : हाँ! सही कहा। फ़ोन के लिए मानो उसने हमें भुला दिया हो। आज के

देश में ऐसा कोई भी नहीं है जिसके पास फ़ोन न हो। हर किसी के पास फ़ोन है।

शालू : हमारा देश डिजिटल बन गया है। कपड़े ख़रीदने हों तो फ़ोन से, सब्ज़ियाँ

ख़रीदनी हों तो मोबाइल से, आजकल सब फ़ोन से ही तो हो रहा है।

काजल : मेरी बेटी ने तो मुझे परेशान कर रखा है दिन भर बस फ़ोटो खींचती

रहती है और तो और इंस्टाग्राम की तो दीवानी है। बस एक ही काम आता

है—रील बनाना।

महिमा : तेरी नहीं, बहन! मेरी और सभी के बच्चों का यही हाल है। पढ़ने को कहो

तो फ़ोन से, सभी कुछ फ़ोन से ही होता है।

रूमा दादी (कमर पकड़ते हुए) : अरे! मोबाइल तो मुझे चलाना भी नहीं आता।

अभी आया है ये मोबाइल। हमारे ज़माने में तो होमोफ़ोन हुआ करते थे। उसी

फ़ोन से बात किया करते थे हम। उसी फ़ोन से गुज़ारा हुआ करता था।

शिवानी : हाँ, दादी जी सही कहा आपने।

रूमा दादी : आजकल के बच्चों को फ़ोन चाहिए, नहीं तो उनका गुज़ारा ही नहीं

होगा।

शालू : मेरा बेटा तो फ़ोटो से ही वीडियो बना देता है। उसे पढ़ाई के बारे में

इतना पता नहीं होगा जितना उसे फ़ोन के बारे में पता है।

महिमा : वैसे तेरे बेटे की आँख कैसी है? डॉक्टर ने कुछ बताया। उसको साफ़

दिखाई नहीं दे रहा था। उसकी आँख में कुछ प्रॉब्लम हो रही थी।

शालू : दीदी, अभी उसे ही दवा दिलाकर लाई हूँ। डॉक्टर ने कहा है कि इसे फ़ोन,

टीवी मत देखने दो, उसी की लाइट से इसकी आँख पर बुरा प्रभाव पड़ा है। मैं

उसे इतना मना करती थी कि इतना मोबाइल मत चला, लेकिन वह सुनता नहीं

था। फ़ोन की हानिकारक लाइट से उसकी आँख ख़राब हो गई है।

रजनी : ओ... अब उसे मोबाइल मत चलाने देना।

शालू : अब तो उसे मैं मोबाइल छूने तक नहीं दूँगी।

महिमा : (अच्छा वो छोड़ो) तुम लोगों के पास फ़ोन है न, लेकिन मेरे पास तो वो

भी नहीं है। मुझे फ़ोन तभी मिलता है जब मेरे पति ऑफ़िस से घर आते हैं।

महिमा : मेरे पास फ़ोन तो है, लेकिन ख़राब पड़ा है। फ़ोन ठीक कराने डाल रखा

है।

रूमा दादी : तुम सबको पता है जो जानवी का भाई था न उसका कल एक्सीडेंट

हो गया था। वो चल भी नहीं पा रहा था, लेकिन भगवान का लाख शुक्रिया कि

उसके पास फ़ोन था। उसने मदद के लिए किसी को बुला लिया था।

शिवानी : मतलब मोबाइल के दुरुपयोग और उपयोग भी हैं। अगर खाना न मिले

तो लोगों को चलेगा, लेकिन एक दिन फ़ोन नहीं मिला तो लोग परेशान हो जाते

हैं।

हिना

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