माँ की सुंदरता

तुम तो चार बच्चों की माँ कहीं से नही लगती—आज भी लोग अक्सर मम्मी से यही बात

कह जाते हैं। आज के समय में भी मम्मी ने कभी अपने रहने का तरीक़ा नहीं बदला। कहने

को वो आज 40 साल की हो गई हैं। उन्हें हमेशा की तरह हाथ में दो कड़े, माथे पे लाल

बिंदी, सिंदूर और सादी साड़ी पहनना ज्यादा भाता है। मम्मी थोड़े शांत मिज़ाज की हैं, लेकिन

ग़लती करने पर हद से ज़्यादा डांटती भी हैं। अब समय के साथ साथ उनका रंग सांवला-सा

पड़ता जा रहा है। वह धीरे-धीरे पतली भी हो रही हैं। उनके माथे पे घर को लेके एक चिंता-सी

रहती है। कभी-कभार बैठे-बैठे ना जाने क्या सोचते-सोचते अपने में ही खो जाती हैं। शरीर में

थोड़ी कमज़ोरी है, लेकिन काम में आज भी उतनी ही चौकस हैं।

मम्मी अपना पूरा दिन सुबह उठकर रात सोने तक घर के कामों को पूरा करने में गुज़ारती

हैं। सुबह 5:30 का अलार्म बजते ही कुछ करवटें बदलने के बाद वह उठ जाती हैं। उठने के

साथ ही मम्मी घर के कामों में जुट जाती हैं। घर के कमरे थोड़े छोटे हैं। दीवारों का रंग

हल्का पड़ चुका है। दीवार से सटकर एक बेड, मेज, कुर्सी और एक टीवी है। घर के मचानों में

आज भी काफ़ी सारा पुराना सामान रखा हुआ है। बाहर बरामदे में एक कैलेंडर टिका है

जिसमें मम्मी ने काफी गोले बना रखे हैं जिस दिन घर में सिलेंडर आता है, उसी दिन मम्मी

उस तारीख़ पर गोला लगा देती है ताकि यह याद रहे कि किस दिन सिलेंडर आया था।

घर की स्लेपों पर पुराने बर्तन रखे हुए हैं। थोड़ी ऊँचाई पर पर दादी की बहुत साल पुरानी

तस्वीर टंगी हुई है और जगह-जगह कपड़े जिन्हें देख मम्मी का यही डायलॉग रहता है,

‘‘दुनिया भर के कपड़े यही भरे पड़े हैं। ’’ घर के अंदर घुसते ही सामने एक अलमारी है जिसे

एक छोटे-से मंदिर का आकार दिया हुआ है। इसमें रोज सुबह नहाने के बाद मम्मी मंदिर में

पूजा करती हैं। पूजा करने के बाद मम्मी बालों को कसकर एक जूड़े में बाँधती हैं, जो शाम

तक टिका रहता है। वह पल्लू को साड़ी में अटाकर सीधी रसोई में जाती हैं।

घर की रसोई कमरे से बाहर बरामदे में उल्टे हाथ की तरफ़ है। रसोई बहुत पुरानी है, पर

मम्मी कभी ऐसा लगने ही नहीं देतीं। वह हमेशा उसे साफ़ रखती हैं। रसोई में आते ही वह

मामले में अदरक कूटते-कूटते चाय चढ़ाती हैं और सुबह के खाने की तैयारी करती हैं। वैसे

मम्मी ने आज तक दादा के सामने आवाज़ तक नहीं की है। उन्होंने इतने साल पहले की

लाज में गुजारे हैं। इस कारण काम करने के बीच दादा बाहर आते हैं तो उन्हें घूँघट का भी

बहुत ध्यान रखना पड़ता है। रसोई एक अकेली ऐसी जगह है, जहाँ मम्मी अपना ज़्यादातर

समय बिताती हैं।

बाहर दीवार से सटे फ्रिज के बगल में मम्मी का एक छोटा-सा कोना है। जहाँ रोज़ मम्मी

एक पटरी पर बैठकर कुछ वक़्त बिताती हैं। वह पटरी तक़रीबन 8 साल पुरानी है। इसकी

प्लाई आधी घिस चुकी है, लेकिन अभी भी उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

रसोई में काम निपटाने के बाद मम्मी घर में साफ़-सफ़ाई करती हैं। झाड़ू-पोंछा, बर्तन और

फिर कपड़े धोती हैं। कपड़े धोना मम्मी का एक मुश्किल भरा काम है, कपड़े धोते-धोते मम्मी

काफ़ी हाँफने लगती हैं। उनके हाथों में दर्द उठता है और उनके चेहरे का रंग लाल पड़ जाता

है। कपड़ों की भरी बाल्टी उठाते हुए उनकी कमर भी अकड़ने लगती है।

सुबह के ये काम निपटाने के बाद मम्मी खाना खाती हैं और फिर आधा घंटा आराम करती

हैं। इसके बाद दो बजे पॉर्लर के लिए तैयार होती हैं। बचपन से ही मम्मी को नई चीज़

सीखने का बहुत शौक है। बीते कोरोना काल के पहले मम्मी ने सिलाई सीखी थी।

वह रोज़ रामलीला मैदान की तरफ़ वाले सिलाई सेंटर पर सिलाई सीखने जाती थीं। यह जगह

सुंदर नगरी के एच ब्लॉक में है। वहाँ एक आंटी सिलाई सीखाती हैं। आंटी मम्मी की हमउम्र

हैं। मम्मी और उनकी मुलाकात हमारी गली की आँगनवाड़ी में ही हुई थी और आज भी अगर

उनकी मुलाकात होती है तो आँगनवाड़ी में ही होती है। वे जब बातें करने बैठती हैं तो बातें

खत्म ही नहीं होतीं। जब कोरोना आया तो मम्मी घर पर रहकर फोन पर यू-ट्यूब में खाने

की नई-नई चीज़ें बनाना सीखती थीं, जैसे : रसगुल्ले, केक, ढोकला और भी बहुत कुछ...

लॉकडाउन रहा हो या कोरोना उन्हें हमेशा कुछ न कुछ सीखने का अभी भी शौक़ है।

उनका पॉर्लर कंप्लीट हो चुका है। मम्मी को पॉर्लर में जाकर अच्छा लगता है। मम्मी रोज़

वहाँ पर मेकअप की सेल्फ प्रैक्टिस करती हैं और नए-नए हेयर स्टाइल सीखती हैं। यह सब

सीखने में उन्हें थोड़ी दिक़्क़त भी आती है, क्योंकि उनके सारे पैसे तो महँगे प्रोडक्ट ख़रीदने

में ही लग जाते हैं! वैसे मम्मी कभी ज़्यादा तैयार तो नहीं होतीं, लेकिन जब वह त्योहार पर

सजती हैं तो ऐसा लगता है मानो घर में चार चाँद लग गए हैं।

शाम के पाँच बजते हैं तो मम्मी पॉर्लर से आ जाती हैं, थोड़ा आराम करने के बाद वह बाज़ार

से सब्जियाँ लाती हैं और शाम की चाय बनाने लगती हैं। साथ ही साथ पानी भी भरती हैं

और फिर रात के खाने की तैयारी करती हैं। खाना खाने के बाद मम्मी बर्तन धोती हैं। सारा

काम हो जाने के बाद मम्मी सोने के लिए बिस्तर लगाती हैं। दिन भर की थकावट होने के

कारण बिस्तर पर लेटते ही उन्हें नींद आ जाती है।

मैं मम्मी की सुंदरता को कितना ही लिख लूँ, लेकिन उनकी मन की सुंदरता को कभी बयान

नहीं कर सकती।

-कनिका

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